एक तरफ जरूरतमंद परिवारों की गाढ़ी कमाई से बनाई गई नींव पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ अवैध रूप से प्लाट खरीदने-बेचने वाले प्रॉपर्टी डीलरों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। गरीब आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं, जबकि उनकी जमीन बेचकर अपनी तिजोरियां भरने वाले भू-माफिया चैन की नींद सो रहे हैं। शहर में चारों तरफ अवैध कॉलोनियां बसाने का धंधा चल रहा है।जाटोली, घना से लगे क्षेत्र, विजय नगर, आजन, रामनगर दो मोरा, मुरवारा, गोलपुरा के बाहर और रामपुरा के ऊपर अवैध प्लाट छोड़े जा रहे हैं। ज्यादातर अवैध कॉलोनियों में सड़कों की चौड़ाई मास्टर प्लान के अनुसार नहीं है। न ही जोनल प्लान के अनुसार विभिन्न कार्यों के लिए जमीन छोड़ी गई है। नियमानुसार हर कॉलोनी में पार्क, सामुदायिक भवन, स्कूल और अस्पताल जैसे सार्वजनिक उपयोग के लिए जमीन छोड़ने का प्रावधान है। अवैध धंधा करने वाले लालच के चलते इन्हें भी बेचने से नहीं कतराते।
केस-1 खुद के प्रयासों से बनाया मकान, प्रशासन ने तुड़वा दिया
सेक्टर-13 के ई, एन, जे ब्लॉक और गिरीश विहार के आसपास गैरमजरूआ जमीन पर प्लॉट बना दिए गए। इनके चारों ओर नींव भर दी गई। इनमें से कुछ में लोहे की चादरें डालकर मकान की दीवारें भी खड़ी कर दी गईं। भू-माफिया ने ये प्लॉट मजदूरों, रिक्शा चालकों और सफाई कर्मचारियों को बेच दिए। जिन्होंने कड़ी मेहनत करके जमीन का टुकड़ा खरीदा था। इनके घर का सपना पूरा होने से पहले ही प्रशासन ने बुलडोजर से उसे गिरा दिया। जब रजिस्ट्री का हवाला दिया गया तो जिम्मेदार लोगों ने माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय पीड़ितों को कानून का पाठ पढ़ाया।
केस-2 सौदे में कागजों पर नहीं दिखते सफेदपोश लोग
शहर में अवैध कॉलोनियों के अवैध कारोबार के पीछे शहर के कई छोटे-बड़े सफेदपोश लोग हैं। जब कोई अवैध कॉलोनी गिराई जाती है तो बार-बार इन लोगों का नाम सामने आता है। ये भू-माफिया किसानों को थोड़ी-बहुत रकम एडवांस में देकर उनसे एग्रीमेंट करते हैं। इसके बाद वे पत्थर गाड़कर या कच्ची सड़क बनाकर जमीन को टुकड़ों में बेचना शुरू कर देते हैं। सौदा होने के बाद खरीदार और किसान को डीड राइटर के पास भेज दिया जाता है। वे खरीदारों के लिए रजिस्ट्री, एग्रीमेंट या जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बनवा लेते हैं। इन पर अवैध कारोबार करने वालों का नाम कहीं भी अंकित नहीं होता। ऐसे में किसी तरह का विवाद होने पर उनका नाम अंकित नहीं होता। जैसे-जैसे प्लॉट बिकते जाते हैं, वे किसान को थोड़ी-थोड़ी रकम देते रहते हैं। सिवायचक घोषित करने का प्रावधान... प्रशासन के पास भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 90ए और काश्तकारी अधिनियम की धारा 177 के तहत बेदखली की कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें संबंधित जमीन को सरकारी घोषित किया जा सकता है। इसी तरह बीडीए की धारा 17, 31, 32, 33 और 35 के तहत ऐसी जमीनों पर कार्रवाई का प्रावधान है। कृषि भूमि पर एग्रीमेंट कर बेचे थे प्लॉट, बीडीए दस्ते ने ढहाए... नूंह और नगला गोपाल में कृषि भूमि पर एग्रीमेंट कर प्लॉट बेचे गए। 28 अप्रैल को एसडीएम की निगरानी में कार्रवाई की गई। पुलिस दस्ते के साथ पहुंचे बीडीए दस्ते ने प्लॉटों पर भरी गई नींव को ढहा दिया।
प्रभावित लोगों ने मौके पर ही विरोध किया। जब उन्होंने दस्तावेज होने का हवाला दिया तो अफसरों ने एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश देकर मामले से पल्ला झाड़ लिया। प्लॉटिंग करने वाले भूमाफियाओं के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। यहां प्लॉट खरीदने वाले कई लोगों ने बताया कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी की जमा पूंजी लगाकर प्लॉट खरीदे और अब वे परेशानी में हैं।
भूमाफियाओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएं अफसर
जब तक भूमाफियाओं को जेल नहीं भेजा जाता, तब तक अवैध कारोबार बंद नहीं होगा। बीडीए अफसरों को शिकायतकर्ता मानकर धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। साथ ही पुलिस को पीड़ितों के मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज करवाने चाहिए। इससे भूमाफिया पीड़ितों पर केस वापस लेने और गवाही बदलने का दबाव नहीं बना पाएंगे। सड़क, सुविधा क्षेत्र आदि के लिए सरकारी जमीन को रजिस्ट्री और एग्रीमेंट के जरिए बेचने वालों पर भी मुकदमा होना चाहिए।
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