नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेट गवर्नेंस फोरम (IGF) में साइबरपीस इंडेक्स की औपचारिक घोषणा हुई। यह सूचकांक मौजूदा वैश्विक साइबर मापदंडों से बिल्कुल अलग दृष्टिकोण पेश करता है। अब तक ज्यादातर इंडेक्स किसी देश की साइबर ताकत, आक्रामक क्षमताओं, भूराजनीतिक प्रभाव और तकनीकी बुनियादी ढांचे पर केंद्रित रहते आए हैं। लेकिन इस नए फ्रेमवर्क का फोकस नागरिकों के डिजिटल अनुभव, उनकी सुरक्षा और विश्वास पर है।
दुनिया में तेजी से बढ़ते रैनसमवेयर, डेटा चोरी, गलत सूचना और डीपफेक जैसी चुनौतियों के बीच अब जरूरी हो गया है कि हम इंटरनेट को न केवल सुरक्षित बल्कि भरोसेमंद भी बनाएं। साइबरपीस इंडेक्स इसी विचार से विकसित किया गया है।
अब तक जो भी साइबर सूचकांक बने हैं, वे आमतौर पर इस बात पर ध्यान देते हैं कि किसी देश के पास कितनी तकनीकी ताकत है, या वह किस हद तक साइबर हमले कर सकता है या उनसे बच सकता है। लेकिन साइबरपीस इंडेक्स का मकसद यह देखना है कि साधारण लोग इंटरनेट पर कितना सुरक्षित महसूस करते हैं, उन्हें गलत जानकारी, धोखाधड़ी या ऑनलाइन शोषण से बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
क्या है इस इंडेक्स की खास बात?
यह इंडेक्स 10 मुख्य बिंदुओं पर किसी देश का आकलन करेगा। इसमें शामिल हैं—
इन सभी पहलुओं के ज़रिए यह मापा जाएगा कि एक देश अपने नागरिकों को कितना सुरक्षित, समावेशी और भरोसेमंद डिजिटल वातावरण देता है।
भारत के लिए क्यों ज़रूरी है यह इंडेक्स?
भारत में 85 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर हैं, लेकिन डिजिटल अपराध, गलत सूचना और डीपफेक जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं। महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण लोगों के लिए ऑनलाइन दुनिया अभी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। अभी तक जो वैश्विक इंडेक्स हैं, वे सिर्फ ताकत या बुनियादी ढांचे पर ध्यान देते हैं। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को एक ऐसा फ्रेमवर्क चाहिए जो सामान्य नागरिकों की डिजिटल सुरक्षा, विश्वास और अधिकारों पर केंद्रित हो। साइबरपीस इंडेक्स यही अवसर देता है।
भारत जैसे देश, जहां 85 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स हैं, वहां इस इंडेक्स का महत्व और भी बढ़ जाता है। आज भारत डिजिटल इंडिया और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) के जरिए तकनीकी विकास की मिसाल बन चुका है। लेकिन इसके साथ साइबर हमलों, फेक न्यूज, डीपफेक और ऑनलाइन शोषण की चुनौतियां भी बढ़ी हैं, खासकर महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण उपयोगकर्ताओं के लिए।
भारत के संदर्भ में साइबरपीस इंडेक्स यह आकलन करेगा:
यह इंडेक्स कैसे मदद करेगा?
निष्कर्ष
साइबरपीस इंडेक्स सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि एक सोच है—कि इंटरनेट केवल तकनीक का मामला नहीं, लोगों की सुरक्षा, गरिमा और विश्वास का भी है। यह एक ऐसा कदम है जो भारत सहित पूरी दुनिया को एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण डिजिटल भविष्य की ओर ले जा सकता है।
दुनिया में तेजी से बढ़ते रैनसमवेयर, डेटा चोरी, गलत सूचना और डीपफेक जैसी चुनौतियों के बीच अब जरूरी हो गया है कि हम इंटरनेट को न केवल सुरक्षित बल्कि भरोसेमंद भी बनाएं। साइबरपीस इंडेक्स इसी विचार से विकसित किया गया है।
अब तक जो भी साइबर सूचकांक बने हैं, वे आमतौर पर इस बात पर ध्यान देते हैं कि किसी देश के पास कितनी तकनीकी ताकत है, या वह किस हद तक साइबर हमले कर सकता है या उनसे बच सकता है। लेकिन साइबरपीस इंडेक्स का मकसद यह देखना है कि साधारण लोग इंटरनेट पर कितना सुरक्षित महसूस करते हैं, उन्हें गलत जानकारी, धोखाधड़ी या ऑनलाइन शोषण से बचाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
क्या है इस इंडेक्स की खास बात?
यह इंडेक्स 10 मुख्य बिंदुओं पर किसी देश का आकलन करेगा। इसमें शामिल हैं—
- साइबर सुरक्षा की तैयारी
- साइबर अपराध से निपटने की क्षमता
- डिजिटल शिक्षा और समावेशन
- सरकार और प्राइवेट सेक्टर का सहयोग
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नैतिक उपयोग
- यूजर्स का भरोसा और मानसिक सुरक्षा
इन सभी पहलुओं के ज़रिए यह मापा जाएगा कि एक देश अपने नागरिकों को कितना सुरक्षित, समावेशी और भरोसेमंद डिजिटल वातावरण देता है।
भारत के लिए क्यों ज़रूरी है यह इंडेक्स?
भारत में 85 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर हैं, लेकिन डिजिटल अपराध, गलत सूचना और डीपफेक जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं। महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण लोगों के लिए ऑनलाइन दुनिया अभी भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। अभी तक जो वैश्विक इंडेक्स हैं, वे सिर्फ ताकत या बुनियादी ढांचे पर ध्यान देते हैं। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को एक ऐसा फ्रेमवर्क चाहिए जो सामान्य नागरिकों की डिजिटल सुरक्षा, विश्वास और अधिकारों पर केंद्रित हो। साइबरपीस इंडेक्स यही अवसर देता है।
भारत जैसे देश, जहां 85 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स हैं, वहां इस इंडेक्स का महत्व और भी बढ़ जाता है। आज भारत डिजिटल इंडिया और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) के जरिए तकनीकी विकास की मिसाल बन चुका है। लेकिन इसके साथ साइबर हमलों, फेक न्यूज, डीपफेक और ऑनलाइन शोषण की चुनौतियां भी बढ़ी हैं, खासकर महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण उपयोगकर्ताओं के लिए।
भारत के संदर्भ में साइबरपीस इंडेक्स यह आकलन करेगा:
- नागरिक खुद को ऑनलाइन कितना सुरक्षित महसूस करते हैं।
- शिकायत निवारण तंत्र कितना प्रभावी है।
- क्षेत्रीय भाषाओं में सहायता कितनी सुलभ है।
- सरकार और डिजिटल प्लेटफॉर्म का ट्रस्ट एंड सेफ्टी मॉडल कैसा है।
यह इंडेक्स कैसे मदद करेगा?
- नीति बनाने में सहायक होगा
- साइबर खतरों पर समय रहते चेतावनी देगा
- नागरिकों को जागरूक और सशक्त बनाएगा
निष्कर्ष
साइबरपीस इंडेक्स सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि एक सोच है—कि इंटरनेट केवल तकनीक का मामला नहीं, लोगों की सुरक्षा, गरिमा और विश्वास का भी है। यह एक ऐसा कदम है जो भारत सहित पूरी दुनिया को एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण डिजिटल भविष्य की ओर ले जा सकता है।
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