ICICI बैंक और वीडियोकॉन ग्रुप से जुड़ा लोन घोटाला अब एक निर्णायक मुकाम में पहुंच गया है. हाल ही में एक अपीलेट ट्रिब्यूनल ने पूर्व ICICI बैंक CEO और MD चंदा कोचर को ₹64 करोड़ की रिश्वत लेने का दोषी ठहराया है. उन्होंने वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का लोन पास कराने के बदले ₹64 करोड़ की रिश्वत ली.
यह मामला सिर्फ पैसे का खेल नहीं, बल्कि बैंकिंग नियमों, RBI की गाइडलाइंस और बैंक की क्रेडिट पॉलिसी के उल्लंघन से जुड़ा है और वित्तीय अनुशासन के दृष्टिकोण से भारत की सबसे जटिल कॉर्पोरेट जांचों में से एक माना जा रहा है. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत दिए गए इस फैसले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आरोपों को सही ठहराया गया और इसे एक स्पष्ट 'क्विड प्रो क्वो' यानी ‘लेन-देन के बदले लाभ’ का मामला बताया गया.
यह केस भारत के सबसे हाई-प्रोफाइल कॉर्पोरेट घोटालों में से एक बन चुका है, जिसमें हितों के टकराव, पद के दुरुपयोग और चंदा कोचर के बैंक में लिए गए फैसलों को उनके पति की कंपनी के जरिए मिले निजी लाभों से जोड़ने वाले वित्तीय सबूत सामने आए हैं.
क्या है पूरा मामला?
2009 से 2011 के बीच, ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप की कई कंपनियों को लगभग ₹1,875 करोड़ का लोन दिया था. खासकर सितंबर 2009 में बैंक ने वीडियोकॉन की एक कंपनी को ₹300 करोड़ का बड़ा लोन दिया. इसके एक दिन बाद, वीडियोकॉन की एक दूसरी कंपनी से ₹64 करोड़ की रकम चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी में भेजी.
जांच में पता चला कि यह पैसा रिश्वत के तौर पर दिया गया था. इसका मतलब है कि बैंक से लोन मिलने के बदले यह अमाउंट गुप्त तरीके से दी गई. दीपक कोचर उस कंपनी को चलाते थे, इसलिए यह मामला ‘क्विड प्रो क्वो’ यानी ‘लोना-रिश्वत’ का है.
आरोप के बाद अक्टूबर 2018 में चंदा कोचर ने छोड़ा था पद
2016 में कुछ लोगों और पत्रकारों ने चंदा कोचर पर सवाल उठाए कि उन्होंने लोन देने में अपने पति के बिजनेस से जुड़े फैसले लिए हैं. इसके बाद, मार्च 2018 में CBI ने इस मामले की जांच शुरू की. जांच बढ़ने पर, चंदा कोचर ने अक्टूबर 2018 में अपना पद छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि वे व्यक्तिगत वजह से इस्तीफा दे रही हैं, लेकिन उस समय बैंक की नीतियों का उल्लंघन करने और पति के कारोबार के बारे में जानकारी न देने की जांच भी चल रही थी.
जनवरी 2019 में वीडियोकॉन ग्रुप के मालिक, चंदा कोचर और उनके खिलाफ दर्ज हुई FIR
जनवरी 2019 में इस केस ने और गंभीर रूप ले लिया जब CBI ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन ग्रुप के मालिक वेणुगोपाल धूत के खिलाफ FIR दर्ज की. इन पर धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और अपने पद का गलत इस्तेमाल करने के आरोप लगाए गए. ये आरोप भारतीय कानून (IPC) और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत आते हैं. इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी जांच शुरू की और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के तहत कोचर परिवार की ₹78 करोड़ की संपत्तियां अस्थायी रूप से जब्त कर लीं. लेकिन नवंबर 2020 में एक विशेष कोर्ट ने कहा कि ED उस समय तक यह साबित नहीं कर पाया था कि उन संपत्तियों और अपराध के बीच सीधा संबंध है, इसलिए उन्हें वापस किया जा सकता है.
दिसंबर 2022 में गिरफ्तारी और फिर जमानत
दिसंबर 2022 में इस मामले में एक बड़ा कदम तब उठाया गया, जब CBI ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन कंपनी के मालिक वेणुगोपाल धूत को गिरफ्तार कर लिया. CBI का कहना था कि उसे पक्का सबूत मिल गया है कि कोचर दंपति ने वीडियोकॉन को लोन देने के बदले में निजी फायदा उठाया. लेकिन ज्यादा दिन नहीं बीते कि जनवरी 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चंदा और दीपक कोचर को अंतरिम जमानत दे दी. कोर्ट ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी सही तरीके से नहीं की गई थी और यह कदम कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी में उठाया गया लगता है. कोर्ट का कहना था कि सीबीआई ने नियमों को ठीक से नहीं अपनाया. उन्हें जमानत तो मिल गई, लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ. प्रवर्तन निदेशालय का मानना था कि कोचर दंपति की कुछ संपत्तियां गलत तरीके से कमाई गई थीं, इसलिए जांच अब तक जारी रही.
सितंबर 2024 में फिर सुर्खियों में आया यह मामला
सितंबर 2024 में ICICI-वीडियोकॉन लोन घोटाले का मामला फिर से सुर्खियों में आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को नोटिस भेजा. दरअसल, CBI ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दोनों को अंतरिम जमानत दी गई थी. CBI का कहना है कि अगर कोचर दंपति जमानत पर बाहर रहते हैं, तो इससे जांच में दखल पड़ सकता है. इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय ने भी अपनी जांच के निष्कर्षों को दोहराया और यह बताया कि लोन मिलने के बाद पैसा किस तरह से अलग-अलग कंपनियों के जरिए कोचर परिवार से जुड़ी कंपनियों तक पहुंचाया गया. ED का दावा है कि चंदा कोचर और उनके पति ने उन कंपनियों पर नियंत्रण रखा जिनको लोन के तुरंत बाद फायदा हुआ.
3 जुलाई को अपीलीय ट्राइब्यूनल ने चंदा कोचर को दोषी ठहराया
3 जुलाई 2025 को एक बड़ी कानूनी कार्रवाई में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) की अपीलीय ट्राइब्यूनल ने चंदा कोचर को दोषी ठहराया. यह फैसला प्रवर्तन निदेशालय (ED) की उस जांच पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि चंदा कोचर ने ICICI बैंक की CEO रहते हुए वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का लोन मंजूर किया और इसके बदले ₹64 करोड़ की रिश्वत ली. यह पैसा सीधे तौर पर वीडियोकॉन की एक कंपनी से निकलकर उनके पति दीपक कोचर की कंपनी 'न्यूपावर रिन्यूएबल्स' में पहुंचा. ट्राइब्यूनल ने इसे एक 'सीधी रिश्वत' करार दिया और कहा कि यह कोई नॉर्मल कारोबारी लेनदेन नहीं था.
इससे पहले 2020 में एक फैसले के तहत ED द्वारा जब्त की गई संपत्तियों को वापस देने की अनुमति दी गई थी, लेकिन अब ट्राइब्यूनल ने उस फैसले को पलटते हुए कहा कि उस समय जांच में मौजूद अहम सबूतों की अनदेखी की गई थी. ट्राइब्यूनल ने यह भी साफ किया कि चंदा कोचर, ICICI बैंक की क्रेडिट कमेटी की सदस्य होते हुए, अपने पति की कंपनी से जुड़े हितों का खुलासा करने में नाकाम रहीं. इसके बावजूद उन्होंने लोन पास करने में हिस्सा लिया, जो बैंक की आचार संहिता और भरोसे की जिम्मेदारी का उल्लंघन था. इस फैसले के बाद यह मामला और गंभीर हो गया है और यह साफ संकेत है कि कानूनी कार्रवाई आगे और तेज हो सकती है.
यह मामला सिर्फ पैसे का खेल नहीं, बल्कि बैंकिंग नियमों, RBI की गाइडलाइंस और बैंक की क्रेडिट पॉलिसी के उल्लंघन से जुड़ा है और वित्तीय अनुशासन के दृष्टिकोण से भारत की सबसे जटिल कॉर्पोरेट जांचों में से एक माना जा रहा है. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत दिए गए इस फैसले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के आरोपों को सही ठहराया गया और इसे एक स्पष्ट 'क्विड प्रो क्वो' यानी ‘लेन-देन के बदले लाभ’ का मामला बताया गया.
यह केस भारत के सबसे हाई-प्रोफाइल कॉर्पोरेट घोटालों में से एक बन चुका है, जिसमें हितों के टकराव, पद के दुरुपयोग और चंदा कोचर के बैंक में लिए गए फैसलों को उनके पति की कंपनी के जरिए मिले निजी लाभों से जोड़ने वाले वित्तीय सबूत सामने आए हैं.
क्या है पूरा मामला?
2009 से 2011 के बीच, ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप की कई कंपनियों को लगभग ₹1,875 करोड़ का लोन दिया था. खासकर सितंबर 2009 में बैंक ने वीडियोकॉन की एक कंपनी को ₹300 करोड़ का बड़ा लोन दिया. इसके एक दिन बाद, वीडियोकॉन की एक दूसरी कंपनी से ₹64 करोड़ की रकम चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की कंपनी में भेजी.
जांच में पता चला कि यह पैसा रिश्वत के तौर पर दिया गया था. इसका मतलब है कि बैंक से लोन मिलने के बदले यह अमाउंट गुप्त तरीके से दी गई. दीपक कोचर उस कंपनी को चलाते थे, इसलिए यह मामला ‘क्विड प्रो क्वो’ यानी ‘लोना-रिश्वत’ का है.
आरोप के बाद अक्टूबर 2018 में चंदा कोचर ने छोड़ा था पद
2016 में कुछ लोगों और पत्रकारों ने चंदा कोचर पर सवाल उठाए कि उन्होंने लोन देने में अपने पति के बिजनेस से जुड़े फैसले लिए हैं. इसके बाद, मार्च 2018 में CBI ने इस मामले की जांच शुरू की. जांच बढ़ने पर, चंदा कोचर ने अक्टूबर 2018 में अपना पद छोड़ दिया. उन्होंने कहा कि वे व्यक्तिगत वजह से इस्तीफा दे रही हैं, लेकिन उस समय बैंक की नीतियों का उल्लंघन करने और पति के कारोबार के बारे में जानकारी न देने की जांच भी चल रही थी.
जनवरी 2019 में वीडियोकॉन ग्रुप के मालिक, चंदा कोचर और उनके खिलाफ दर्ज हुई FIR
जनवरी 2019 में इस केस ने और गंभीर रूप ले लिया जब CBI ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन ग्रुप के मालिक वेणुगोपाल धूत के खिलाफ FIR दर्ज की. इन पर धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और अपने पद का गलत इस्तेमाल करने के आरोप लगाए गए. ये आरोप भारतीय कानून (IPC) और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत आते हैं. इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी जांच शुरू की और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के तहत कोचर परिवार की ₹78 करोड़ की संपत्तियां अस्थायी रूप से जब्त कर लीं. लेकिन नवंबर 2020 में एक विशेष कोर्ट ने कहा कि ED उस समय तक यह साबित नहीं कर पाया था कि उन संपत्तियों और अपराध के बीच सीधा संबंध है, इसलिए उन्हें वापस किया जा सकता है.
दिसंबर 2022 में गिरफ्तारी और फिर जमानत
दिसंबर 2022 में इस मामले में एक बड़ा कदम तब उठाया गया, जब CBI ने चंदा कोचर, उनके पति दीपक कोचर और वीडियोकॉन कंपनी के मालिक वेणुगोपाल धूत को गिरफ्तार कर लिया. CBI का कहना था कि उसे पक्का सबूत मिल गया है कि कोचर दंपति ने वीडियोकॉन को लोन देने के बदले में निजी फायदा उठाया. लेकिन ज्यादा दिन नहीं बीते कि जनवरी 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चंदा और दीपक कोचर को अंतरिम जमानत दे दी. कोर्ट ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी सही तरीके से नहीं की गई थी और यह कदम कुछ ज्यादा ही जल्दबाजी में उठाया गया लगता है. कोर्ट का कहना था कि सीबीआई ने नियमों को ठीक से नहीं अपनाया. उन्हें जमानत तो मिल गई, लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ. प्रवर्तन निदेशालय का मानना था कि कोचर दंपति की कुछ संपत्तियां गलत तरीके से कमाई गई थीं, इसलिए जांच अब तक जारी रही.
सितंबर 2024 में फिर सुर्खियों में आया यह मामला
सितंबर 2024 में ICICI-वीडियोकॉन लोन घोटाले का मामला फिर से सुर्खियों में आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को नोटिस भेजा. दरअसल, CBI ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें दोनों को अंतरिम जमानत दी गई थी. CBI का कहना है कि अगर कोचर दंपति जमानत पर बाहर रहते हैं, तो इससे जांच में दखल पड़ सकता है. इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय ने भी अपनी जांच के निष्कर्षों को दोहराया और यह बताया कि लोन मिलने के बाद पैसा किस तरह से अलग-अलग कंपनियों के जरिए कोचर परिवार से जुड़ी कंपनियों तक पहुंचाया गया. ED का दावा है कि चंदा कोचर और उनके पति ने उन कंपनियों पर नियंत्रण रखा जिनको लोन के तुरंत बाद फायदा हुआ.
3 जुलाई को अपीलीय ट्राइब्यूनल ने चंदा कोचर को दोषी ठहराया
3 जुलाई 2025 को एक बड़ी कानूनी कार्रवाई में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) की अपीलीय ट्राइब्यूनल ने चंदा कोचर को दोषी ठहराया. यह फैसला प्रवर्तन निदेशालय (ED) की उस जांच पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि चंदा कोचर ने ICICI बैंक की CEO रहते हुए वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का लोन मंजूर किया और इसके बदले ₹64 करोड़ की रिश्वत ली. यह पैसा सीधे तौर पर वीडियोकॉन की एक कंपनी से निकलकर उनके पति दीपक कोचर की कंपनी 'न्यूपावर रिन्यूएबल्स' में पहुंचा. ट्राइब्यूनल ने इसे एक 'सीधी रिश्वत' करार दिया और कहा कि यह कोई नॉर्मल कारोबारी लेनदेन नहीं था.
इससे पहले 2020 में एक फैसले के तहत ED द्वारा जब्त की गई संपत्तियों को वापस देने की अनुमति दी गई थी, लेकिन अब ट्राइब्यूनल ने उस फैसले को पलटते हुए कहा कि उस समय जांच में मौजूद अहम सबूतों की अनदेखी की गई थी. ट्राइब्यूनल ने यह भी साफ किया कि चंदा कोचर, ICICI बैंक की क्रेडिट कमेटी की सदस्य होते हुए, अपने पति की कंपनी से जुड़े हितों का खुलासा करने में नाकाम रहीं. इसके बावजूद उन्होंने लोन पास करने में हिस्सा लिया, जो बैंक की आचार संहिता और भरोसे की जिम्मेदारी का उल्लंघन था. इस फैसले के बाद यह मामला और गंभीर हो गया है और यह साफ संकेत है कि कानूनी कार्रवाई आगे और तेज हो सकती है.
You may also like
अब भारतीय एयरस्पेस में 23 अगस्त तक नहीं आ सकेंगे पाकिस्तानी विमान, केंद्र सरकार ने बढ़ाया प्रतिबंध
ओडिशा में महिलाओं के खिलाफ अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक और हृदयविदारक: नवीन पटनायक
टेलर स्विफ्ट की डॉक्यूमेंट्री सीरीज का ऐलान, जानें क्या है खास
रोहित और सहवाग... एक साथ दो धुरंधर को पछाड़ेंगे ऋषभ पंत, भारतीय टेस्ट का 'किंग' बन जाएंगे
अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजना में फर्जीवाड़ा की जांच एसआईटी करेगी : पुष्कर सिंह धामी