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द्रौपदी का श्राप: कुत्तों के सहवास की रोचक कथा

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कथा का परिचय

महाभारत से जुड़ी एक दिलचस्प लोककथा प्रचलित है, जिसमें कहा गया है कि कुत्तों के खुले में सहवास करने का कारण द्रौपदी का श्राप है। हालांकि, यह कथा किसी प्रामाणिक शास्त्रीय ग्रंथ में नहीं मिलती, फिर भी यह समाज में काफी प्रसिद्ध है।


कथा की शुरुआत

जब अर्जुन ने द्रौपदी से विवाह किया और घर लौटे, उस समय माता कुंती किसी काम में व्यस्त थीं। उन्होंने बिना देखे ही सभी पांडवों को आदेश दिया, "जो भी लाओगे, सब मिलकर बांट लेना।" माता के इस वचन का सम्मान करते हुए द्रौपदी का विवाह सभी पाँच पांडवों से हुआ।


एक नियम बनाया गया कि हर वर्ष द्रौपदी केवल एक पांडव के साथ रहेगी और उस समय अन्य पांडवों का उनके कक्ष में प्रवेश वर्जित होगा। पहचान के लिए, जो भी पांडव द्रौपदी के कक्ष में जाता, वह अपनी पादुकाएं बाहर उतार देता था।


घटना जो बनी श्राप का कारण

एक दिन अर्जुन द्रौपदी के साथ कक्ष में थे और उनकी पादुकाएं बाहर रखी थीं। तभी एक कुत्ता आया और खेलते-खेलते पादुकाएं उठा ले गया। उसी समय भीम कक्ष की ओर आए और बाहर पादुकाएं न देखकर उन्होंने सोचा कि कक्ष खाली है और अंदर प्रवेश कर गए।


भीम को देखकर द्रौपदी लज्जित और क्रोधित हुईं। उन्होंने कहा कि अर्जुन की पादुकाएं बाहर हैं, तो तुमने अंदर कैसे कदम रखा? भीम ने बताया कि वहाँ कोई पादुका नहीं थी। अर्जुन और भीम ने मिलकर खोज की और पास के जंगल में जाकर देखा कि एक कुत्ता पादुकाओं से खेल रहा है।


द्रौपदी का श्राप

इस घटना से द्रौपदी को यह एहसास हुआ कि जैसे आज उन्हें किसी ने असहज स्थिति में देखा, वैसे ही इस कुत्ते को भी संसार के सामने सहवास करते समय देखा जाए। क्रोध और लज्जा में द्रौपदी ने कुत्ते को श्राप दिया, "आज से तुम जब भी सहवास करोगे, सबकी आँखों के सामने करोगे और तुम्हें लज्जा नहीं आएगी।"


इसी कारण से यह लोककथा कहती है कि आज भी कुत्ते खुले में सहवास करते हैं और उन्हें कोई लज्जा नहीं होती।


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