बता दे कि पिछले दिनों कश्मीर पुलिस ने एक सर्कुलर जारी किया है और इस सर्कुलर के बारे में हर किसी का जानना बेहद जरूरी है। जी हां इस सर्कुलर में बताया गया है कि किसी व्यक्ति पर क्रिमिनल केस होने पर क्या उस व्यक्ति को सरकारी नौकरी मिल सकती है या वह व्यक्ति विदेश यात्रा कर सकता है। बहरहाल फील्ड इंटेलिजेंस यूनिट्स से कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति सरकारी नौकरी या पासपोर्ट के लिए आवेदन करता है तो यह देखा जाएं कि कही वह पत्थरबाजी या सड़कों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने जैसी गतिविधि में तो शामिल नहीं था। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति का क्रिमिनल रिकॉर्ड मिलता है तो उसे सिक्योरिटी क्लियरेंस न दिया जाएं।
दरअसल इंडियन पासपोर्ट एक्ट 1967 के सेक्शन 6(2) के अनुसार पासपोर्ट अधिकारी के पास यह अधिकार है कि वह पासपोर्ट जारी करने से इंकार कर सकता है। जी हां अगर आवेदक भारत का नागरिक नहीं है या आवेदक भारत के बाहर देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ गतिविधियों में शामिल रहा हो या आवेदक का विदेश जाना देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो तो ऐसी स्थिति में आवेदक को मना किया जा सकता है। इसके इलावा अगर आवेदक को पांच साल में कम से कम दो साल की सजा हुई हो तो पासपोर्ट अधिकारी उसे पासपोर्ट देने से इंकार कर सकते है।
इसका मतलब ये है कि अगर आवेदक के खिलाफ किसी क्रिमिनल कोर्ट में कोई मुकदमा लंबित हो या दो साल की सजा वाला कोई अपराध साबित हुआ हो तो पासपोर्ट का आवेदन खारिज हो सकता है। बता दे कि अगर केंद्र सरकार को लगता है कि किसी व्यक्ति को पासपोर्ट जारी करना जनहित में नहीं है तो उसे पासपोर्ट देने से इंकार किया जा सकता है। गौरतलब है कि पासपोर्ट एक्ट के सेक्शन 22 के संबंध में 1993 में केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया था, जो किसी भी व्यक्ति या ग्रुप को निश्चित अवधि के लिए पासपोर्ट जारी करने की अनुमति देता है।

बहरहाल विदेश मंत्रालय का यह नोटिफिकेशन उन लोगों को राहत देता है, जिनके खिलाफ क्रिमिनल केस पेंडिंग है। इसका मतलब ये है कि अगर आवेदक को कोर्ट से अनुमति मिलती है तो आवेदक पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज हासिल कर सकता है। जी हां इस संबंध में अदालतें पासपोर्ट को निश्चित अवधि के लिए जारी करती है और अगर आदेश में कोई अवधि नहीं लिखी है तो यह पासपोर्ट एक साल के लिए जारी हो सकता है। यहां गौर करने वाली बात ये है कि 1993 के नोटिफिकेशन को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका लगी थी और 2016 में हाईकोर्ट ने नोटिफिकेशन को कायम रखा था।
इस मामले में याचिकाकर्ता सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील भी की थी और उनका तर्क था कि यह सेक्शन गंभीर और गैर गंभीर अपराधों या जमानती और गैर जमानती अपराधों में कोई फर्क नहीं करता है। तो ऐसे में इस आधार पर यह अनुचित है। वही अगर हम सरकारी नौकरी की बात करे तो इस मामले में यह देखा जाता है कि जो व्यक्ति सरकारी नौकरी करने वाला है उसका कैरेक्टर कैसा है। जी हां आमतौर पर आवेदकों को कैरेक्टर सर्टिफिकेट देना ही पड़ता है और उनसे फॉर्म भरवाया जाता है तथा उनसे पूछा जाता है कि क्या उन्हें अतीत में गिरफ्तार किया गया था। क्या उन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था या उनके खिलाफ कोई केस पेंडिंग है या नहीं।
ऐसे में अगर व्यक्ति का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड हो तो वह सरकारी नौकरी नहीं कर सकता। इस बारे में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से बने कानून कहते है कि किसी भी अपराधिक रिकॉर्ड वाले आवेदक को भर्ती करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। हालांकि अगर कोई व्यक्ति अपनी क्रिमिनल रिकॉर्ड से जुड़ी जानकारी छिपाता है तो ऐसी स्थिति में इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जाता है और उस व्यक्ति के खिलाफ केस भी चल सकता है। यहां तक कि अगर वह व्यक्ति नौकरी कर रहा हो तो उसे नौकरी से भी हटाया जा सकता है।
बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने कई दशकों में सुनाएं गए कई तरह के फैसलों को एक साथ संक्षेप में रखते हुए अवतार सिंह बनाम भारत संघ में 2016 में गाइडलाइन तय की थी। यानि अगर हम सीधे शब्दों में कहे तो क्रिमिनल केस होने पर किसी व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने की और पासपोर्ट देने की इजाज़त नहीं होती। दोस्तों इस बारे में आपकी क्या राय है, ये हमें जरूर बताइएगा।
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