नोएडा, 6 अगस्त . मां बनना एक खूबसूरत एहसास होता है, लेकिन इसके साथ कई जिम्मेदारियां भी जुड़ जाती हैं. नवजात शिशु की देखभाल, पोषण और उसकी जरूरतों को समझना मां के लिए चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन वह सबकुछ बेहद आसानी से संभाल लेती है. लेकिन मन में जिस चीज को लेकर सबसे ज्यादा दुविधा बनी रहती है, वह है सही समय पर दूध पिलाना.
अक्सर नई माताओं के मन में यह सवाल होता है कि बच्चे को कब और कितनी बार दूध पिलाना चाहिए. कुछ माएं घड़ी देखकर फीड कराती हैं, तो कुछ बच्चे के रोने का इंतजार करती हैं. लेकिन क्या यही तरीका सही है? बच्चे की भूख को पहचानने और समय पर उसे दूध पिलाने के लिए मां को कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है.
नोएडा स्थित सीएचसी भंगेल की सीनियर मेडिकल ऑफिसर और गाइनेकोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. मीरा पाठक ने शिशु को दूध पिलाने के सही समय और तरीकों को लेकर अहम जानकारी दी है.
डॉ. मीरा पाठक बताती हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश है कि नवजात शिशु को हर दो से तीन घंटे के अंतराल पर दूध पिलाया जाना चाहिए. हालांकि, यह ध्यान रखना चाहिए कि ब्रेस्टफीडिंग केवल घड़ी देखकर तय नहीं होनी चाहिए. जीवन के शुरुआती दो से तीन हफ्ते खासतौर पर ऐसे होते हैं जब बच्चा ज्यादा सोता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि मां बच्चे को समय-समय पर जगाकर दूध पिलाएं, ताकि वह भूखा न रह जाए. पर जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, ब्रेस्टफीडिंग का समय उसकी भूख के अनुसार तय किया जाना चाहिए, न कि घड़ी के हिसाब से.
उन्होंने आगे बताया, ”दो से छह महीने की उम्र तक का शिशु पूरे दिन में लगभग 8 से 12 बार दूध पीता है. इस उम्र में ब्रेस्टफीडिंग डिमांड पर आधारित होनी चाहिए. यानी जब बच्चा भूखा हो और संकेत दे, तभी उसे दूध देना चाहिए.”
डॉ. पाठक ने कहा कि रात के समय अगर बच्चा खुद उठकर दूध मांगता है, तभी उसे दूध देना चाहिए. जबरदस्ती नींद से जगाकर उसे फीड कराना जरूरी नहीं है, क्योंकि इस उम्र में बच्चे की भूख और नींद का एक नियमित पैटर्न बनने लगता है.
उन्होंने आगे कहा, ”छह महीने के बाद जब शिशु को टॉप फीड यानी पूरक आहार दिया जाना शुरू होता है, तब ब्रेस्टफीडिंग की मांग पहले से कम हो जाती है. इस अवस्था में बच्चा आमतौर पर 5 से 6 बार ही स्तनपान करता है. ऐसे में माता-पिता को बच्चे के संकेतों को बारीकी से समझना चाहिए.”
डॉ. मीरा पाठक कहती हैं कि जब बच्चा हाथों को मुंह में डालने लगे या हल्का-हल्का रोने लगे… तो ये संकेत हैं कि वह भूखा है. ऐसे में बच्चे को तुरंत दूध पिला देना चाहिए, उसके जोर से रोने का इंतजार नहीं करना चाहिए.
डॉक्टर ने बताया कि हर बच्चे का फीडिंग करने का तरीका अलग होता है. कुछ बच्चे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार दूध पीते हैं, जबकि कुछ एक बार में ही पर्याप्त दूध लेकर लंबे समय तक नहीं मांगते. ऐसे में मां को अपने बच्चे की आदत और जरूरतों को समझना चाहिए और उसी अनुसार उसे फीड कराना चाहिए.
मां की भूमिका केवल शिशु को दूध पिलाने तक सीमित नहीं होती, बल्कि उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत को समय पर पहचानना और पूरा करना भी उसकी जिम्मेदारी है. सही जानकारी, धैर्य और समझदारी के साथ मां न केवल बच्चे का पोषण बेहतर कर सकती है, बल्कि उसके संपूर्ण विकास की नींव भी मजबूती से रख सकती है.
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पीके/एएस
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