काशी, 15 सितंबर . बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी सनातन संस्कृति की आत्मा मानी जाती है. यहां के घाटों पर बहती गंगा केवल जल नहीं, बल्कि आस्था की धारा है. इन्हीं घाटों और तीर्थस्थलों में एक स्थान है, पिशाचमोचन कुंड, जिसे पितृ कार्यों के लिए अत्यंत पावन और शक्तिशाली माना जाता है.
वाराणसी स्थित पिशाचमोचन कुंड का वर्णन स्कंद पुराण और काशी खंड में भी मिलता है. यह स्थान काशी के लंका क्षेत्र में स्थित है और इसे पिशाचों को मोक्ष प्रदान करने वाला तीर्थ भी कहा जाता है.
मान्यता है कि यहां आने मात्र से पापों का नाश हो जाता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व है. यह स्थान केवल एक कुंड नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा केंद्र है, जहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है.
त्रिपिंडी श्राद्ध में तीन पिंड बनाए जाते हैं, पहला पितृकुंड (पिता के लिए), दूसरा मातृकुंड (माता के लिए), और तीसरा विमल तीर्थ (अन्य दिवंगत परिजनों के लिए).
यह श्राद्ध मुख्यत: उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु के बाद विधि-पूर्वक कर्म नहीं हुए या जिनकी आत्माएं अभी तक मुक्त नहीं हो पाईं.
मान्यता है कि गयाजी में श्राद्ध करने से पहले काशी में त्रिपिंडी श्राद्ध करना जरूरी है, क्योंकि काशी में किया गया पिंडदान और तर्पण पितरों को त्वरित मोक्ष की ओर अग्रसर करता है.
माना जाता है कि गयाजी में श्राद्ध से आत्मा को पितृलोक मिलता है, लेकिन काशी में किए गए श्राद्ध से आत्मा सीधे शिवलोक या मोक्ष को प्राप्त होती है.
कुंड के पास एक पीपल का पेड़ है. कहा जाता है कि इस पेड़ पर सिक्के रखने से पितरों का सभी उधार चुकता हो जाता है और उन्हें सभी बाधाओं से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त होता है.
इसके साथ ही सात्विक, राजस और तामस प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए काले, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं.
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पीआईएम/एबीएम
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