जबलपुर, 3 नवंबर . संस्कारधानी जबलपुर की पुण्यभूमि केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि दैवीय है, क्योंकि यहीं 13 सितंबर 1933 (भाद्रपद सुद नोम) के पावन दिन पर परम पूज्य महंत स्वामी महाराज का अवतरण हुआ था. वही दिव्य बालक, जो आगे चलकर विश्वव्यापी बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के आध्यात्मिक अधिष्ठाता और लाखों हृदयों के प्रेरणास्रोत गुरु बने.
हिंदू शास्त्रों में कहा गया है, ‘संप्रदायों गुरु क्रमः,’ अर्थात् किसी भी सच्चे संप्रदाय की पहचान उसकी गुरु परंपरा से होती है. यह परंपरा भगवान श्री स्वामिनारायण से आरंभ होकर आज छठे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, प्रकट ब्रह्मस्वरूप परम पूज्य महंत स्वामी महाराज तक अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित है.
महंत स्वामी महाराज का पूर्वाश्रम नाम था विनूभाई. बाल्यकाल से ही उनमें शांति, सज्जनता और ज्ञान की प्यास का अद्भुत संगम दिखाई देता था.
विनूभाई को पुस्तकों से गहरी मित्रता थी. वे अक्सर पास के बगीचे या चांदनी रात में भी पढ़ते रहते. उनकी एकाग्रता इतनी अद्भुत थी कि कक्षा में सुना हुआ पाठ स्मृति में अंकित हो जाता. घर लौटकर उन्हें पुनः पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती.
स्कूल जाते समय एक बड़ा नाला पड़ता था. जहां बाकी बच्चों को अभिभावक छोड़ने आते, वहीं निडर विनूभाई अकेले ही पार करते. बाल्यावस्था से ही आत्मविश्वास और निर्भीकता उनके स्वभाव में थी.
घर में Gujaratी, बाहर हिंदी और स्कूल में अंग्रेजी, तीन भाषाओं के वातावरण में भी उनकी पकड़ हर विषय पर अद्भुत थी. तीसरी कक्षा में याद की हुई कविताएं आज भी उन्हें कंठस्थ हैं.
महंत स्वामी महाराज ने जबलपुर के क्राइस्ट चर्च बॉयज हाई स्कूल से सीनियर कैम्ब्रिज तक की शिक्षा पूर्ण की. पांचवीं कक्षा में प्रथम स्थान पाकर उन्होंने जो पुरस्कार चुना, वह था एक पुस्तक. ज्ञान के प्रति उनकी निष्ठा का यह सबसे सुंदर प्रमाण था.
उनकी कला-सूझ भी अत्यंत निराली थी. स्कूल में सुंदर चित्र बनाना उनकी आदत थी. वे स्वयं कहा करते थे कि मैं चित्र तो बनाता हूं, पर चित्रकला में करियर बनाने का कभी विचार नहीं आया. जो चित्र या कलाकृति बनाई, उसे बाद में भूल जाना ही मेरा नियम था, क्योंकि सच्ची कला आसक्ति नहीं, आत्मशांति का माध्यम है.
फुटबॉल उनका प्रिय खेल था. ‘लेफ्ट फुल बैक’ पोजीशन पर उनका कौशल सबका ध्यान खींचता था. वे सदैव शांत, मुस्कुराते और आत्मीयता से भरे रहते, सभी सहपाठियों के प्रिय.
उनके स्कूल प्रिंसिपल रॉबिन्सन अक्सर कहा करते थे, ‘विनूभाई, आप भविष्य में एक महान धर्मगुरु बनेंगे.’ और यह भविष्यवाणी आज अक्षरशः सत्य सिद्ध हुई है.
महंत स्वामी महाराज का जीवन इस सत्य का प्रमाण है कि अध्यात्म जन्म से नहीं, स्वभाव से प्रकट होता है. ज्ञान, विनम्रता, निडरता और सेवा, ये चारों गुण उनके बचपन से ही उनके अस्तित्व का हिस्सा थे.
आज वही बालक, जिनका बचपन पुस्तक, प्रार्थना और पवित्रता में बीता, वे ही आज विश्वभर में 55 देशों, 1,800 मंदिरों और लाखों श्रद्धालुओं के आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं. उनका जीवन सिखाता है, “सच्चा विद्यार्थी वही है जो जीवनभर ज्ञान, विनम्रता और सेवा में रमा रहे.
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एमएस/डीकेपी
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