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Bloody Corridor: बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की ढीली पड़ी पकड़, सेना के तीखे रुख ने खोले सत्ता संघर्ष के नए मोर्चे

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बांग्लादेश की सियासी फिजा इन दिनों बेहद तनावपूर्ण दौर से गुजर रही है। एक ओर अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पर दबाव बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान के बयान ने देश की सत्ता संरचना में दरारें उजागर कर दी हैं। हालिया घटनाक्रम में 'Bloody Corridor' शब्द सिर्फ एक सैन्य चेतावनी नहीं बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश बन चुका है, जिसने ढाका की गलियों में सत्ता संघर्ष को और भी तीव्र कर दिया है।

क्या है 'Bloody Corridor'?

'Bloody Corridor' असल में एक भौगोलिक परियोजना का राजनीतिक नामकरण है। यह चटगांव से म्यांमार के राखिन प्रांत तक प्रस्तावित मानवीय सहायता गलियारे को लेकर है, जिसे अंतरिम सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र की सहायता के लिए सहमति दी गई थी। लेकिन यह सहमति बांग्लादेश की सेना को विश्वास में लिए बिना दी गई, जो अब राजनीतिक भूचाल का कारण बन गई है।



सेना प्रमुख जमान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "यह गलियारा बांग्लादेश की संप्रभुता पर सीधा हमला है और इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।" इस बयान के बाद से यूनुस की स्थिति और अधिक कमजोर होती चली गई।


सेना क्यों है विरोध में?

सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों को आशंका है कि इस कॉरिडोर के जरिये म्यांमार के भीतर जारी गृहयुद्ध की आग बांग्लादेश तक फैल सकती है।

• अराकान आर्मी जैसे विद्रोही गुटों की गतिविधियां सीमा पर पहले से ही बढ़ी हुई हैं।

• हथियारों और उग्रवादियों की तस्करी को लेकर खुफिया एजेंसियां सतर्क हैं।

• रोहिंग्या संकट पहले से ही बांग्लादेश के कंधों पर भारी है, और गलियारे के खुलने से नए शरणार्थियों की आमद हो सकती है।

राजनीति में कमजोर पड़ते यूनुस

नोबेल पुरस्कार विजेता और पूर्व में सामाजिक उद्यमिता के प्रतीक रहे मोहम्मद यूनुस ने जब से अंतरिम सरकार की बागडोर संभाली है, वे खुद को एक राजनेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन पिछले 9 महीनों में छात्र संगठनों से लेकर सेना तक उनके खिलाफ आवाजें तेज़ हो चुकी हैं।

नेशनल सिटिज़न पार्टी (NCP) जैसे छात्र आधारित संगठनों ने लगातार विरोध प्रदर्शन किए हैं। यूनुस के इस्तीफे की मांग ज़ोर पकड़ चुकी है और उन्हें खुद कहना पड़ा कि "वे खुद को बंधक जैसा महसूस कर रहे हैं और मौजूदा माहौल में काम करना संभव नहीं लग रहा।"

साफ हो रहा है अमेरिकी प्रभाव का विरोध


बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में एक पहलू यह भी है कि कई विश्लेषकों के अनुसार यूनुस और उनके सलाहकारों पर अमेरिकी दबाव है, ताकि देश में एक खास भू-रणनीतिक योजना को आगे बढ़ाया जा सके। माना जाता है कि अमेरिका इस कॉरिडोर के ज़रिए म्यांमार में चीन के प्रभाव को संतुलित करना चाहता है, लेकिन इसके लिए बांग्लादेश की भूमिका को निर्णायक बना दिया गया है — जो कि सेना को स्वीकार नहीं।

सेना की सीधी चेतावनी: सीमाएं तय हैं


जनरल जमान ने साफ शब्दों में कहा कि बांग्लादेश की सेना किसी भी ऐसी नीति का हिस्सा नहीं बनेगी जो देश की संप्रभुता को खतरे में डाले। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि कोई भी निर्णय राष्ट्रीय आम सहमति से ही होना चाहिए, न कि किसी एकतरफा निर्णय के आधार पर।

संघर्ष की परिणति: यूनुस का संभावित इस्तीफा

इन हालातों में मोहम्मद यूनुस का पद पर बने रहना मुश्किल होता जा रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान को सेना की आपत्ति के बाद यह स्पष्टीकरण देना पड़ा कि सरकार ने अब तक कॉरिडोर को लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है और भविष्य में भी बिना व्यापक सहमति के ऐसा नहीं किया जाएगा।

सत्ता की रस्साकशी या संप्रभुता की रक्षा?

'Bloody Corridor' बांग्लादेश की भू-राजनीतिक परिस्थितियों का प्रतीक बन चुका है — एक ऐसा गलियारा जो मानवीय सहायता के नाम पर सामरिक मोर्चा बन सकता है। मोहम्मद यूनुस की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सेना की संप्रभुता की चिंता अब आमने-सामने खड़ी हैं। आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यूनुस दबाव में इस्तीफा देते हैं या सत्ता की इस खींचतान में कोई नया समीकरण उभरकर सामने आता है।

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