बीजेपी की रूलबुक के हिसाब से मध्य प्रदेश के जनजातीय मंत्री विजय शाह और उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने कुछ भी गलत नहीं कहा, बिलकुल भी नहीं। वही कहा, जो संघ और मोदी के सच्चे स्वयंसेवक को कहना चाहिए। ये मंत्री बेचारे संघ-बीजेपी के अनकहे रूटीन का श्रद्धापूर्वक पालन कर रहे थे। अपनी और से कुछ भी नया नहीं जोड़ रहे थे। लाइन से हटकर कुछ नहीं कर रहे थे!
यह तो नाम से ही स्पष्ट है कि कर्नल सोफिया कुरैशी किस धर्म की हैं और संघ-बीजेपी की नियम-पुस्तिका के अनुसार इस धर्म को मानने वाले दो-चार अपवादों को छोड़कर सभी आतंकवादी, पाकिस्तानी, देशद्रोही आदि हैं। विजय शाह ने वही बोला, जो आगे जाकर बाकी बीजेपी सांसदों, विधायकों, मंत्रियों और स्वयंसेवकों को अपनी-अपनी तरह से बोलना था!
उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने भी देश और देश की सेना को मोदी जी के आगे नतमस्तक करवा कर उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया था। यही बीजेपी में आगे और आगे और आगे बढ़ते रहने का राजमार्ग है। इस पर जो भी चला, वह पिछले ग्यारह साल में सफलता की सीढ़ियां चढ़ता गया, उतरा नहीं। रुका नहीं, थमा नहीं, थका नहीं। उसने पीछे मुड़कर देखा नहीं। वह मंजिल की ओर बढ़ता गया!
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की गद्दी का तो आरक्षण हो चुका है मगर वह मुख्यमंत्री बना, मंत्री बना, सांसद नहीं बना तो विधायक तो बना ही। कुछ भी नहीं बन सका तो जिला पंचायत का अध्यक्ष बना, किसी नगर निगम का महापौर या नगर पालिका का अध्यक्ष बना। यह भी नहीं बना तो पंच-सरपंच बना। और यह सबकुछ भी नहीं बना तो इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स, ईडी, सीबीआई के छापों से सुरक्षित हो गया। कहने का मतलब यह कि इस मार्ग पर जो भी भक्तिभाव पूर्वक चला, कभी निराश नहीं हुआ। हताश नहीं हुआ!
पिछले ग्यारह साल में इस भाषा में बोलने वालों ने बनाया ही बनाया। कमाया ही कमाया। विजय शाह ने हाथ घुमा-घुमाकर वीरतापूर्ण अंदाज में कर्नल सोफिया कुरैशी को 'आतंकवादियों की बहन' कहा तो कुछ और बड़ा पाने के लिए कहा, बेमक़सद नहीं कहा। विडियो गवाह है कि जहां कहा, वहां इस पर तालियां खूब पिटीं। एक भूतपूर्व मंत्री और विधायक उषा ठाकुर ने अपने मन की यह बात सुनकर अपनी खास मुस्कुराहट के साथ इसका स्वागत किय!
सब चकाचक चल रहा था। विजय शाह ने यह जुमला फेंककर पार्टी में अपने नंबर बढ़ा लिये थे।मन ही मन मोहन यादव को राजनीतिक कुश्ती में पछाड़ दिया था। मुख्यमंत्री के सिंहासन को डगमगा दिया था। कल्पना में वह मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठ भी चुके थे, प्रधानमंत्री से आशीर्वाद ले चुके थे, अमित शाह के यहां सिर नवा चुके थे। राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री बन चुके थे। किसे मालूम था कि मध्य प्रदेश में एक उच्च न्यायालय भी हुआ करता है और उनके दो जजों में इतनी हिम्मत है कि वे इस प्लान में भांजी मारने की कोशिश कर सकते हैं! अमूमन अदालतें ऐसी कठिनाइयां पैदा करती नहीं। जजों में आजकल दया-माया काफी दिखाई देती है!
मंत्री जी के आकलन में यह ज़रा सी भूल हो गई थी कि उन्हें यह याद नहीं रहा कि सोफिया कुरैशी केवल मुस्लिम नहीं हैं। वे सेना में कर्नल हैं। और कर्नल ही नहीं हैं, आपरेशन सिंदूर के दौरान सेना की प्रवक्ता हैं! सेना की धर्मनिरपेक्ष छवि की ब्रांड एम्बेसडर हैं। ऐसे में मामला उल्टा भी पड़ सकता है। शुरू में जरा सा हल्ला मचा था तो बेचारे ने माफी मांगकर सब मैनेज कर लिया था। मगर बीच में हाईकोर्ट आ गया। उसने खुद आगे बढ़कर मंत्री जी के शब्दों का संज्ञान ले लिया और चार घंटे के अंदर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए।
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन ने यहां तक कह दिया कि एफआईआर आज ही रजिस्टर करें, ऐसे मामलों में कोई कल नहीं है। मैं कल तक जिन्दा रहूँ, न रहूँ। उन्होंने ऐसी दफाओं में केस दर्ज करने का हुक्म दिया कि जिसमें मंत्री को सात साल की सज़ा हो सकती है। अगले दिन पुलिस ने कमजोर एफआईआर दर्ज की तो पुलिस को फिर काफी डांट पिलाई। दिल्ली हाईकोर्ट के एक जज ने भी कुछ साल पहले ऐसी हिम्मत दिखाने की गुस्ताखी की थी तो रातों-रात उनका स्थानांतरण कर दिया गया था!
हमारा तो यही कहना है कि इन मंत्रियों के साथ इतनी सख्ती ठीक नहीं। देखिए न अगर अदालतों ने इतना सख्त होना शुरू कर दिया तो जेलें इनसे भर जाएंगी, बेचारे छोटे-छोटे अपराधी तब कहां जाएंगे? तिरंगा यात्रा निकालने के इस खुशगवार मौसम में अधिकांश भाजपाइयों और संघियों के साथ ऐसा 'अन्याय 'ठीक नहीं। इस तरह तो आकाजी से लेकर काकाजी तक कोई नहीं बचेगा। जेल से देश चल रहा होगा और देश जैसे आज चल रहा है, उसी तरह चल रहा होगा। जब अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री जेल में थे तो दिल्ली के उपराज्यपाल की मेहरबानी से सरकार उतनी ही अच्छी या उतनी ही खराब चल रही थी, जितनी कि अमूमन चलती है। बस केजरीवाल जी अंदर तड़प रहे थे!
इनके खिलाफ एफआईआर ठीक से दर्ज हुई, इनका ग़लती से इस्तीफा हो गया (वैसे होगा नहीं, बीजेपी में यह परंपरा नहीं) तो बाकी सब तो ठीक है मगर हिंदुत्व का छोटी ऊंगली बराबर नुकसान हो जाएगा। 'नये भारत ' के प्रतीक बुलडोजर का भविष्य कुछ अंधकारमय हो जाएगा, गरीब और मुसलमान थोड़ी सी राहत पा जाएंगे। और जिन्हें हार्ट अटैक अभी तक नहीं आया, आ जाएगा!
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