कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने लद्दाख की मौजूदा स्थिति को लेकर केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक विस्तृत पोस्ट साझा करते हुए कहा कि 6 साल पहले जब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला था, तब वहां के लोगों में नई उम्मीदें थीं, लेकिन आज वे गहरी निराशा और मोहभंग का सामना कर रहे हैं।
लद्दाख की प्रमुख समस्याएं गिनाईंजयराम रमेश ने अपनी पोस्ट में लद्दाख की जनता की चार बड़ी चिंताओं को सामने रखा:
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जमीन और रोजगार का संकट: लोगों को डर है कि उनकी जमीन और नौकरी के अधिकार छिन सकते हैं।
लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अंकुश: निर्वाचित निकायों और प्रशासन पर उपराज्यपाल और नौकरशाही का पूरा नियंत्रण है।
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छठी अनुसूची पर ठोस निर्णय नहीं: लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांगों, जैसे छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा और निर्वाचित विधायिका पर केवल बैठकें हुईं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
चीन से बढ़ती चुनौती: वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के उल्लंघन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 19 जून 2020 को चीन को "क्लीन चिट" दिए जाने से स्थानीय लोगों में गहरी असुरक्षा और अनिश्चितता पैदा हुई है।
'लद्दाख भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम'छह साल पहले जब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, तब वहाँ के लोगों को बड़ी उम्मीदें थीं।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 26, 2025
लेकिन आज हालात बिल्कुल अलग हैं -लोग गहरी निराशा और मोहभंग की स्थिति में हैं, क्योंकि उन्होंने देखा है:
1. उनकी जमीन और रोजगार के अधिकार गंभीर खतरे में हैं।
2. स्थानीय प्रशासन और…
जयराम रमेश ने कहा कि लद्दाख भारत के लिए सांस्कृतिक, आर्थिक, पारिस्थितिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां के लोग हमेशा से गौरवान्वित भारतीय रहे हैं। लेकिन मौजूदा हालात ने उन्हें गहरे संकट और निराशा में धकेल दिया है।
केंद्र से ठोस कार्रवाई की अपीलजयराम रमेश ने अपनी पोस्ट में लिखा, "लद्दाख के लोगों की पीड़ा और वेदना भारत सरकार की अंतरात्मा को जगानी चाहिए। अब केवल और बैठकों का समय नहीं है, बल्कि उनकी वैध आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ठोस और वास्तविक प्रयास होने चाहिए।"
लद्दाख में हाल में हुए हिंसक प्रदर्शनबीते दिनों लेह में हुए हिंसक प्रदर्शनों में चार लोगों की मौत हो गई थी और दर्जनों घायल हुए थे। लोग लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची की संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में वार्ता का आश्वासन तो दिया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस घोषणा नहीं की गई है।
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