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दिनेश प्रताप सिंह ने किया पलटवार: राहुल‑प्रियंका पर 'लाश वोट' आरोप बेबुनियाद

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उत्तर प्रदेश की राजनीति ने एक नया विवाद जन्म लिया है, जिसमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच आरोप‑प्रत्यारोप का ग्राफ ऊँचा हो गया है। एक ओर सोशल मीडिया और विपक्षी दलों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी चुनावों के दौरान “दादी और पिता की मृत देह पर वोट की अपील” कर रहे हैं। दूसरी ओर, भाजपा के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने इस तरह के आरोपों को “झूठ और राजनीतिक बदनाम गाथा” करार दिया है।

यह विवाद तब शुरू हुआ जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने राहुल गांधी की रायबरेली में हुई किसी सभा या जनसंपर्क कार्यक्रम की एक वीडियो क्लिप साझा की जिसमें गंभीर तीखा भाषा प्रयोग हुआ। आरोप है कि उस क्लिप में राहुल‑प्रियंका ने भाव‑नाटकीय तरीके से अपने पिता एवं दादी की यादों को उठाते हुए मतदाताओं से सहानुभूति पर आधारित समर्थन माँगा।

दूसरे पक्ष से भाजपा की प्रतिक्रिया में, दिनेश प्रताप सिंह ने कहा कि ये दावे पूरी तरह से आधारहीन और राजनीति के लिए फैलाई गई अफवाहें हैं। उन्होंने कहा कि गांधी परिवार के सदस्यों द्वारा सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने पूर्वजों को याद करना सामान्य है — लेकिन यह कहना कि ये सब “लाशों पर वोट” की राजनीति है, यह निंदनीय और अस्वीकार्य है।

साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष कार्य‑शैली के नाम पर संवेदनशील मुद्दों का दुरुपयोग कर रहा है ताकि चुनावी माहौल को ध्रुवीकृत किया जा सके। मंत्री ने वहाँ के निवासियों और जनता से अपील की कि वे भावनाओं में बह कर नहीं, बल्कि तथ्यों को देखें।

इस पूरे प्रकरण ने रायबरेली की सियासत को और गरमा दिया है, क्योंकि यह क्षेत्र गांधी परिवार की राजनीतिक विरासत वाला माना जाता है। साथ ही आरोपों की सच्चाई पर चर्चा तेज हो रही है कि क्या सार्वजनिक नेताओं द्वारा संवेदनशील बातें, जैसे परिवार या मृतक सदस्य, चुनाव समय पर राजनीतिक हथियार बन जाते हैं।

स्थानीय नेता और विश्लेषक मानते हैं कि इस तरह के आरोप जनता में द्विद्धा की स्थिति उत्पन्न करते हैं: एक ओर भावनात्मक जुड़ाव और परिवार की यादें, दूसरी ओर राजनीति और आरोप‑प्रत्यारोप की राजनीति।

अभी तक कोई न्यायालयिक कार्रवाई या आधिकारिक जांच की सूचना नहीं है कि इस तरह के दावे प्रमाण स्थापित कर पाएँ। विपक्षी दलों की ओर से मीडिया और सोशल मीडिया पर दबाव है कि वे वीडियो, ऑडियो या वाक्यात्मक प्रमाण सार्वजनिक करें जो यह साबित कर सकें कि ऐसी अपील हुई थी।

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