नौकरी का ऑफर ठुकरा पिता के कारोबार से जुड़े
सेंथिल के पिता शंकर के. दशकों पहले से स्थायी व्यवसायों के प्रति जुनूनी थे। तब यह अवधारणा लोगों को पता तक नहीं थी। उन्होंने 1992 में एक नायलॉन रीसाइक्लिंग व्यवसाय शुरू किया। लेकिन,बाद में उसे बंद कर दिया। 2008 में शंकर ने करूर में 23 लाख रुपये के निवेश के साथ श्री रेंगा पॉलीमर्स की नींव रखी। 2011 में सेंथिल ने टीसीएस की आकर्षक नौकरी और सिलिकॉन वैली से एक ऑफर को ठुकरा कर अपने पिता के साथ जुड़ने का फैसला किया। वह 'ब्रेन ड्रेन' के खिलाफ थे और अपने देश में कुछ करना चाहते थे। वीआईटी वेल्लोर से बी.टेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्नातक सेंथिल को रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी के जीवन पर आधारित बॉलीवुड फिल्म 'गुरु' से प्रेरणा मिली। इस फिल्म ने उन पर गहरी छाप छोड़ी।
बहुत बड़े कर्ज के जाल में फंसे
जब सेंथिल कंपनी में शामिल हुए तब श्री रेंगा पॉलीमर्स PET बोतलों से प्लास्टिक के गुच्छे (flakes) बना रही थी। इसकी उत्पादन क्षमता 300 टन थी। 2014 तक यह क्षमता बढ़कर 600 टन हो गई। वह चीन, श्रीलंका और अमेरिका को निर्यात करने लगे। उसी साल सेंथिल ने गुच्छे से पॉलिएस्टर फाइबर में बदलाव किया, जो PET बोतलों से भी बनता था। एक साल बाद कंपनी ने कलर मास्टर बैच तकनीक को अपनाया। यह एक ऐसा तरीका था जिसमें पानी का इस्तेमाल किए बिना सादे सफेद फाइबर को अलग-अलग रंगों में रंगा जाता है। इससे कपड़े रंगने से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं को कम करने में मदद मिली। हालांकि, इस तकनीकी अपग्रेडेशन के लिए 1 करोड़ रुपये का बैंक कर्ज लेने और अपेक्षित रिटर्न न मिलने के कारण उन्हें कठिन वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके चलते सेंथिल के आईआईटी-स्नातक माता-पिता को भी परिवार का समर्थन करने के लिए वापस काम पर लौटना पड़ा। शुक्र है, 2017 तक बाजार में सुधार हुआ और उनके उत्पाद को पहचान मिली। इससे उन्हें कर्ज चुकाने में मदद मिली।
क्लाइंटों की लंबी फेहरिस्त

इसके बाद कंपनी ने लगातार विकास किया। PET बोतलों को रीसाइकिल करके प्लास्टिक के गुच्छे बनाने से लेकर पॉलिएस्टर फाइबर और फिर उसी कच्चे माल से धागा बनाने तक का सफर तय किया। अंत में, सेंथिल ने अपना खुद का कपड़ों का ब्रांड इकोलाइन (Ecoline) लॉन्च किया। 2018 में करूर टेक्सटाइल पार्क से 250 महिलाओं के साथ इसे शुरू किया गया। शुरू में यह कंपनी स्थानीय और क्षेत्रीय ग्राहकों के लिए टी-शर्ट का निर्माण करती थी। बाद में उन्होंने अपने व्यवसाय का विस्तार किया। जॉकी और वैन ह्यूसेन जैसे प्रसिद्ध ब्रांडों के लिए भी निर्माण करने लगे। 2020 में सेंथिल ने अपने टिकाऊ उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का फैसला किया। शुरुआती चुनौतियों के बावजूद कॉर्पोरेट कंपनियों के समर्थन से व्यवसाय तेजी से विकसित हुआ। इंडियन ऑयल, सेंट गोबेन, इंडिया सीमेंट्स, टीवीएस, रामको, बीएमडब्ल्यू, जोहो और इन्फोसिस जैसी कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों और कॉर्पोरेट कार्यक्रमों के लिए इकोलाइन टी-शर्ट्स लेना शुरू कर दिया। इकोलाइन अब रोजाना 15 लाख PET बोतलों को रीसाइकिल कर रही है। इससे 5 किलोग्राम CO2 उत्सर्जन की बचत होती है। कंपनी ने अब तक 0.75 टीएमसी पानी बचाया है।
35 स्टार्टअप्स में भी लगाया है पैसा

श्री रेंगा पॉलीमर्स के कुल व्यवसाय का 85% रेवेन्यू फाइबर और यार्न से आता है, जबकि इकोलाइन कपड़ों की रेंज 15% का योगदान करती है। इकोलाइन में टी-शर्ट से लेकर जैकेट, एक्टिववियर और ब्लेजर तक 120 से अधिक उत्पाद उपलब्ध हैं। कंपनी में 450 कर्मचारी हैं जो रीसाइक्लिंग, मैन्यूफैक्चरिंग और ब्रांडिंग का काम देखते हैं। सेंथिल ने लगभग 35 स्टार्टअप्स में भी निवेश किया है। उनकी पत्नी जयश्री सेंथिल कंपनी के कानूनी, प्रशासनिक और CSR पहलुओं को संभालती हैं। सेंथिल का मंत्र है 'कभी सीखना बंद न करें'। वह महत्वाकांक्षी उद्यमियों को धैर्य और ईमानदारी के साथ अपने व्यवसाय को समझने और समय देने की सलाह देते हैं।
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