बीजिंग/इस्लामाबाद: CPEC प्रोजेक्ट को बचाने के लिए चीन ने बलूच विद्रोहियों से सीधी बातचीत शुरू करने का फैसला किया है। CNN-News18 की रिपोर्ट के मुताबिक चीन अब बलूचिस्तान में अपने निवेश को सुरक्षित करने और रुके हुए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) पर प्रगति को तेज करने के लिए पाकिस्तानी सेना को दरकिनार करते हुए बलूच समूहों से सीधे जुड़ने का फैसला किया है। चीन का यह नया रुख हाल ही में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ की बीजिंग यात्रा के दौरान चीन की तरफ से साफ शब्दों में कहा गया है। चीन ये कदम इसलिए उठा रहा है क्योंकि CPEC पर लगातार बलोच विद्रोहियों के हमले हो रहे हैं, जिसकी वजह से ग्वादर बंदरगाह और रेको दिक खनन परियोजना जैसी प्रमुख प्रोजेक्ट्स करीब करीब ठप पड़ गये हैं। इसके अलावा, अमेरिका की बलोचिस्तान के खनिज संसाधनों में बढ़ती दिलचस्पी से भी चीन परेशान दिख रहा है। चीन ने CPEC प्रोजेक्ट में 60 अरब डॉलर से ज्यादा निवेश किए हैं, लेकिन बलूच विद्रोही लगातार चीनी कर्मचारियों और चीनी प्रोजेक्ट्स पर हमला करते रहते हैं। कई चीनी इंजीनियर्स को बलूच विद्रोही मौत के घाट उतार चुके हैं। लिहाजा चीन किसी भी हाल में अपने प्रोजेक्ट को बचाना चाहता है। लेकिन बलूच विद्रोहियों से सीधी बातचीत करने का मतलब है कि चीन पाकिस्तान की संप्रभुता का अपमान कर रहा है और उसका पाकिस्तान की सरकार पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं रहा है। बलूचों से डायरेक्ट बातचीत करेगा चीनCNN-News18 के मुताबिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जुड़े बाकी देशों के बीच पॉजिटिव संदेश देने के लिए बलूच विद्रोहियों से सीधे बात करना चाहता है। चीन एक दशक से ज्यादा समय से संघर्ष कर रहा है और अब मानता है कि बलूचिस्तान के असली संरक्षक बलूची लोग हैं। चीन का ये रूख बताता है कि वो अब पाकिस्तान की सेना पर निर्भर रहने के बजाए खुद बात करे। कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि बलूचिस्तान के ज्यादातर इलाकों से पाकिस्तान की सेना का नियंत्रण खत्म हो चुका है और सीपीईसी प्रोजेक्ट गंभीर खतरे में है। इसलिए चीन अब सीधे अपने प्रोजेक्ट को बचाने के लिए मैदान में उतर आया है। बलूच विद्रोहियों ने सैकड़ों पाकिस्तानी सेना के जवानों की हत्या की है और पाकिस्तान की सेना ने हजारों बलूचों को मौत के घाट उतारा है। ये सिलसिला सालों से चल रहा है। इसलिए चीन चाहता है कि वह सीधे बलोच समूहों से बातचीत कर उनके साथ सहयोग बढ़ाए, ताकि परियोजनाएं सुरक्षित रहें और निवेश की प्रक्रिया तेज हो। हालांकि, बलोच समूहों में चीन के इस प्रस्ताव को लेकर गहरा शक है। 2019 में भी दुबई में इस तरह की गुप्त वार्ता का आयोजन किया गया था जो फेल हो गया था। बलोच समूहों में चीन से सीधी बातचीत को लेकर गहरे मतभेद हैं। कुछ समूह बातचीत के पक्ष में हैं जबकि कुछ चीन के इरादे पर शक बताते हुए बातचीत का विरोध कर रहे हैं। बलूचों की मांग बलूचिस्तान की स्वायत्तता और सीपीईसी से होने वाली कमाई में बलूचिस्तान का हिस्सा लेने पर है। आपको बता दें कि अनुमान है कि बलूचिस्तान में करीब 6 ट्रिलियन डॉलर के खनिज संसाधन छिपे हो सकते हैं, जिनमें तांबा, सोना और लिथियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं। ये खनिज चीन के ग्रीन टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिए बेहद जरूरी हैं। सीधे बलोच समूहों से बातचीत करने से चीन को अपनी आपूर्ति श्रृंखला की सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी, साथ ही प्रशासनिक बाधाओं से बचते हुए वह इन खनिजों का दीर्घकालिक दोहन कर सकेगा।
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