आनंद त्रिपाठी, लखनऊ: एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के घाटे में चल रहा पावर कॉरपोरेशन हर साल हजारों करोड़ रुपये का भुगतान बिना एक भी यूनिट बिजली लिए कंपनियों को करता है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह पूर्ववर्ती सरकारों में हुए पावर परचेज एग्रीमेंट हैं। इन एग्रीमेंट का खामियाजा प्रदेश की जनता को महंगी बिजली के रूप में भुगतना पड़ता है। बिजली इंजिनियरों के संगठन संयुक्त संघर्ष समिति का आरोप है कि इन एग्रीमेंट की वजह से कॉरपोरेशन को 2024-25 में बिना बिजली खरीदें ₹6,761 करोड़ का भुगतान करना पड़ा।
मौजूदा समय जो एग्रीमेंट पावर कॉरपोरेशन और बिजली उपभोक्ताओं पर भारी पड़ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर एग्रीमेंट बसपा सरकार में 2010 से 2012 के बीच किए गए। इनमें से ज्यादातर पावर प्लांट तो ऐसे हैं, जिनकी क्षमता बहुत कम है। इस वजह से इन पावर प्लांटों से बिजली की खरीद नहीं की जा रही है या फिर बहुत कम खरीदी जा रही है। ये एग्रीमेंट 25 साल होने की वजह से बिजली न लेने के बाद भी कॉरपोरेशन को फिक्स कॉस्ट के रूप में हर साल अरबों रुपये की रकम चुकानी पड़ती है।
टांडा प्लांट को ₹1,025 करोड़ का भुगतान
2,000 में टांडा पावर प्लांट को एनटीपीसी को बेच दिया गया। पहले इस प्लांट का संचालन राज्य बिजली बोर्ड करता था। संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे के मुताबिक अगर ये प्लांट उत्पादन निगम के पास होता तो इसकी बिजली इतनी महंगी नहीं होती। दरअसल इस प्लांट को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. राम प्रकाश गुप्ता के कार्यकाल में बेचा गया था। उस दौरान नरेश अग्रवाल ऊर्जा मंत्री थे और पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन जीपी सिंह थे।
महंगे करारों को रद्द करने के प्रयास भी हुए नाकाम
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के मुताबिक महंगे पावर परचेज एग्रीमेंट को रद्द करने के लिए पूर्व पावर कॉरपोरेशन चेयरमैन आलोक कुमार ने पत्र लिखा था। लेकिन इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सका जबकि इससे पहले कई राज्य पुराने महंगे पावर परचेज एग्रीमेंट को रद्द कर चुके हैं।
मौजूदा समय जो एग्रीमेंट पावर कॉरपोरेशन और बिजली उपभोक्ताओं पर भारी पड़ रहे हैं, उनमें से ज्यादातर एग्रीमेंट बसपा सरकार में 2010 से 2012 के बीच किए गए। इनमें से ज्यादातर पावर प्लांट तो ऐसे हैं, जिनकी क्षमता बहुत कम है। इस वजह से इन पावर प्लांटों से बिजली की खरीद नहीं की जा रही है या फिर बहुत कम खरीदी जा रही है। ये एग्रीमेंट 25 साल होने की वजह से बिजली न लेने के बाद भी कॉरपोरेशन को फिक्स कॉस्ट के रूप में हर साल अरबों रुपये की रकम चुकानी पड़ती है।
टांडा प्लांट को ₹1,025 करोड़ का भुगतान
2,000 में टांडा पावर प्लांट को एनटीपीसी को बेच दिया गया। पहले इस प्लांट का संचालन राज्य बिजली बोर्ड करता था। संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे के मुताबिक अगर ये प्लांट उत्पादन निगम के पास होता तो इसकी बिजली इतनी महंगी नहीं होती। दरअसल इस प्लांट को पूर्व मुख्यमंत्री स्व. राम प्रकाश गुप्ता के कार्यकाल में बेचा गया था। उस दौरान नरेश अग्रवाल ऊर्जा मंत्री थे और पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन जीपी सिंह थे।
महंगे करारों को रद्द करने के प्रयास भी हुए नाकाम
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा के मुताबिक महंगे पावर परचेज एग्रीमेंट को रद्द करने के लिए पूर्व पावर कॉरपोरेशन चेयरमैन आलोक कुमार ने पत्र लिखा था। लेकिन इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सका जबकि इससे पहले कई राज्य पुराने महंगे पावर परचेज एग्रीमेंट को रद्द कर चुके हैं।
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