नई तकनीकों में निवेश से हुआ फायदा

अजय सिंघल ओम लॉजिस्टिक्स ग्रुप के संस्थापक हैं। उन्होंने 1982 में इसकी नींव रखी थी। दिल्ली के पंजाबी बाग में छोटे से ऑफिस से इसकी शुरुआत हुई थी। अब यह करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी बन चुकी है। यह ऑटोमोबाइल लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग व्यवसाय में है। 1983 में मारुति सुजुकी को इसने अपना पहला बड़ा ग्राहक बनाया था। यहां से अजय सिंघल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने नई तकनीकों में निवेश किया और इनोवेशन को अपनाया। इससे उन्हें बाजार में तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिली। मारुति कारों की डिलीवरी ट्रक में करने वाले वह पहले व्यक्ति थे।
18 साल की उम्र में फैक्ट्री शुरू की
अजय रोहतक गवर्नमेंट कॉलेज से प्री-इंजीनियरिंग डिप्लोमा धारक हैं। 1983 में उन्हें क्लाइंट के तौर पर मारुति मिली। इसका प्लांट गुड़गांव में था। उनका ट्रक पांच कारों को एक के ऊपर एक दो पंक्तियों में रखकर ले जाने में सक्षम था। उन्होंने इंजीनियरिंग के ज्ञान का इस्तेमाल करके ट्रक को मॉडिफाई किया था। डिप्लोमा के बाद अजय ने इंजीनियरिंग की डिग्री नहीं ली। लेकिन, 18 साल की उम्र में दिल्ली के बाहरी इलाके वजीराबाद में रेडियो पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री शुरू करने के लिए अपने एक चाचा के साथ जुड़ गए।
60,000 रुपये में बेचा कारोबार
अजय ने 3,000 रुपये से रेडियो पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री की शुरुआत की। चार साल तक व्यवसाय चलाया। उस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय में शाम की क्लासेज लेकर बी.कॉम भी किया। बाद में अपने व्यवसाय को 60,000 रुपये में बेच दिया। इसके बाद अजय दूसरे चाचा के साथ ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय शुरू करने के लिए जुड़ गए। शुरुआती वर्षों में वह बहुत सक्रिय थे। लॉजिस्टिक्स व्यवसाय के हर पहलू पर काम करते थे। हर कदम का बारीकी से ध्यान रखते थे। चाहे वह माल की बुकिंग हो, बिलिंग हो या सेवाओं की समयबद्धता और समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करना हो।
तेजी से बढ़ने लगा साम्राज्य

अजय ने ट्रकों को बाजार की जरूरतों के अनुरूप बेहतर बनाना जारी रखा। स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके वह 2 लाख रुपये में एक ट्रक बना सकते थे जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में 20 लाख रुपये में उपलब्ध था। जबकि अन्य ट्रक दिल्ली से मुंबई तक माल पहुंचाने के लिए 3,000 रुपये लेते थे, वह इसे 1,200 रुपये में कर सकते थे।। व्यवसाय अच्छा चला। लेकिन, 1990 तक चाचा और भतीजे ने अलग होने और अपने-अपने रास्ते जाने का फैसला कर लिया। वह 15 ट्रक लेकर अलग हो गए। उन्होंने अपनी फर्म 'ओम ऑटो कैरियर्स' को प्रोपराइटरशिप फर्म के रूप में पंजीकृत किया। 1993 में यह ओम लॉजिस्टिक्स (अनलिस्टेड) लिमिटेड बन गई। ओम लॉजिस्टिक्स ने देशभर में गोदाम बनाए हैं। मारुति और बजाज के बाद उन्होंने टाटा को भी अपने साथ जोड़ा। 2002 तक उनका टर्नओवर 100 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। ओम लॉजिस्टिक्स ने 2002 में अंतरराष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स में प्रवेश किया जब मारुति को चीन से स्पेयर पार्ट्स आयात करने की जरूरत थी। 2008 तक कंपनी का टर्नओवर 500 करोड़ रुपये और 2015 में 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
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