नैनीताल: उत्तराखंड में मानसून के दौरान नदियों के विकराल रूप धारण करने और किसानों की भूमि कटाव की घटनाओं पर नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। हाईकोर्ट ने जिम्मेदार विभाग से विस्तृत एक्शन प्लान की रिपोर्ट मांगी है।
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने प्रदेश के सचिव सिंचाई, सचिव खनन, प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखंड तथा एमडी वन विकास निगम को नोटिस जारी करते हुए रिवर ड्रेजिंग और अवैध खनन रोकने के लिए विस्तृत एक्शन प्लान तैयार कर 17 सितंबर को कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि बिना समय पर ड्रेजिंग के नदियां उफान पर आ जाती हैं, जिससे गांवों में बाढ़ जैसे हालात बनते हैं और किसानों की फसलें नष्ट हो जाती हैं।
यह मामला सामाजिक कार्यकर्ता भुवन पोखरिया की जनहित याचिका पर उठा है। पोखरिया ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर शिकायत की कि उत्तराखंड की नदियां बरसात में खतरनाक हो जाती हैं।
नदियों के किनारे ड्रेजिंग (मलवा हटाने) की कमी के कारण जलस्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे नदी किनारे बसे गांव डूब जाते हैं। किसानों की जमीनें कटाव का शिकार हो रही हैं, जबकि नदी किनारे रहने वाले लोग जान-माल के नुकसान का सामना कर रहे हैं। पोखरिया ने कहा, "सरकार की लापरवाही से हर साल सैकड़ों परिवार प्रभावित होते हैं। अवैध खनन नदियों के तल को खोखला कर रहा है, जो बाढ़ को और घातक बना देता है।"
इससे पहले 2023-24 में हाईकोर्ट ने ही राज्य सरकार को मानसूनी नदियों से मलबा हटाने के लिए रिवर ड्रेजिंग नीति लागू करने के निर्देश दिए थे। लेकिन दो साल बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। याचिकाकर्ता ने इसकी शिकायत दोबारा दर्ज कराई, जिस पर कोर्ट ने तत्काल संज्ञान लिया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ड्रेजिंग केवल सरकारी एजेंसियां करेंगी, निजी मशीनों का इस्तेमाल प्रतिबंधित रहेगा। अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी, जहां सरकार को प्लान के साथ रिपोर्ट देनी होगी।
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने प्रदेश के सचिव सिंचाई, सचिव खनन, प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखंड तथा एमडी वन विकास निगम को नोटिस जारी करते हुए रिवर ड्रेजिंग और अवैध खनन रोकने के लिए विस्तृत एक्शन प्लान तैयार कर 17 सितंबर को कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि बिना समय पर ड्रेजिंग के नदियां उफान पर आ जाती हैं, जिससे गांवों में बाढ़ जैसे हालात बनते हैं और किसानों की फसलें नष्ट हो जाती हैं।
यह मामला सामाजिक कार्यकर्ता भुवन पोखरिया की जनहित याचिका पर उठा है। पोखरिया ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर शिकायत की कि उत्तराखंड की नदियां बरसात में खतरनाक हो जाती हैं।
नदियों के किनारे ड्रेजिंग (मलवा हटाने) की कमी के कारण जलस्तर अचानक बढ़ जाता है, जिससे नदी किनारे बसे गांव डूब जाते हैं। किसानों की जमीनें कटाव का शिकार हो रही हैं, जबकि नदी किनारे रहने वाले लोग जान-माल के नुकसान का सामना कर रहे हैं। पोखरिया ने कहा, "सरकार की लापरवाही से हर साल सैकड़ों परिवार प्रभावित होते हैं। अवैध खनन नदियों के तल को खोखला कर रहा है, जो बाढ़ को और घातक बना देता है।"
इससे पहले 2023-24 में हाईकोर्ट ने ही राज्य सरकार को मानसूनी नदियों से मलबा हटाने के लिए रिवर ड्रेजिंग नीति लागू करने के निर्देश दिए थे। लेकिन दो साल बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। याचिकाकर्ता ने इसकी शिकायत दोबारा दर्ज कराई, जिस पर कोर्ट ने तत्काल संज्ञान लिया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ड्रेजिंग केवल सरकारी एजेंसियां करेंगी, निजी मशीनों का इस्तेमाल प्रतिबंधित रहेगा। अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी, जहां सरकार को प्लान के साथ रिपोर्ट देनी होगी।
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