नई दिल्ली: भारत इस साल रूस से समुद्री रास्ते से आने वाले कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। रूस के सबसे खास तेल ग्रेड का 80% हिस्सा भारत ने खरीदा है। भारत की दो प्राइवेट रिफाइनरी कंपनियां ये तेल खरीद रही हैं। ये कंपनियां सस्ते दामों पर मिल रहे इस तेल का फायदा उठा रही हैं। इस कच्चे तेल को खरीदने में सरकारी कंपनियों को नाम-ओ-निशान तक नहीं है।
केप्लर नाम की एक डेटा कंपनी के अनुसार, भारत ने इस साल 24 जून तक 23.1 करोड़ बैरल यूरल्स (Urals) तेल खरीदा है। यूरल्स एक तरह का कच्चा तेल है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी लिमिटेड ने मिलकर रूस से आने वाले इस तेल का 45% हिस्सा खरीदा है।
भारत बना सबसे बड़ी खरीदारभारत यूरल्स तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। साल 2024 में भारत ने इस तेल का 74% हिस्सा खरीदा था। इससे पता चलता है कि भारत रूस से मिलने वाली ऊर्जा पर कितना निर्भर है। साथ ही, यह भी पता चलता है कि भारत रूस के लिए कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत से रूस को बहुत पैसा मिलता है।
पहले चीन की छोटी रिफाइनरी कंपनियां (जिन्हें टीपॉट्स कहा जाता है) रूस से तेल खरीदती थीं। लेकिन अब चीन में टैक्स के नियम सख्त हो गए हैं और तेल की मांग भी कम हो गई है। इसलिए चीन अब रूस से उतना तेल नहीं खरीद रहा है।
प्राइवेट कंपनियों ने बढ़ाई हिस्सेदारीपिछले कुछ सालों में भारत की प्राइवेट रिफाइनरी कंपनियों ने यूरल्स तेल की खरीदारी बढ़ा दी है। साल 2025 में तो उन्होंने बहुत ज्यादा तेल खरीदा है। रिलायंस कंपनी ने इस साल 7.7 करोड़ बैरल तेल खरीदा है। अब रिलायंस दुनिया में यूरल्स तेल की सबसे बड़ी खरीदार बन गई है।
रिलायंस ने रूस के साथ की डीलरिलायंस ने रूस के साथ एक समझौता किया है। इस समझौते के अनुसार रिलायंस रूस से हर दिन 5 लाख बैरल तक तेल खरीदेगी। यह समझौता 10 साल के लिए है और जनवरी से शुरू हो गया है। केप्लर के अनुसार रिलायंस अब जितना भी कच्चा तेल खरीदती है, उसमें से 36% यूरल्स तेल होता है। साल 2022 में यह सिर्फ 10% था। नायरा कंपनी जितना भी तेल खरीदती है, उसमें से 72% यूरल्स तेल होता है। तीन साल पहले यह सिर्फ 27% था।
सरकारी कंपनियों की कितनी हिस्सेदारी?भारत की सरकारी रिफाइनरी कंपनियां (जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ने रूस के साथ कोई समझौता नहीं किया है। इन कंपनियों को तेल खरीदने के लिए कुछ खास तरह की करेंसी का इस्तेमाल करना होता है, जिससे उन्हें तेल खरीदने में दिक्कत होती है।
रिलायंस और नायरा के रूस से तेल खरीदने की वजह से यूरल्स तेल की सप्लाई कम हो गई है। इससे भारत की सरकारी रिफाइनरी कंपनियों को तेल खरीदने में दिक्कत हो रही है। उन्हें अब तेल के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं। पहले उन्हें प्रति बैरल 4 डॉलर की छूट मिलती थी, लेकिन अब सिर्फ 2 डॉलर की छूट मिल रही है। यह जानकारी उन लोगों ने दी है जो इस तेल के व्यापार में शामिल हैं।
केप्लर नाम की एक डेटा कंपनी के अनुसार, भारत ने इस साल 24 जून तक 23.1 करोड़ बैरल यूरल्स (Urals) तेल खरीदा है। यूरल्स एक तरह का कच्चा तेल है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और नायरा एनर्जी लिमिटेड ने मिलकर रूस से आने वाले इस तेल का 45% हिस्सा खरीदा है।
भारत बना सबसे बड़ी खरीदारभारत यूरल्स तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। साल 2024 में भारत ने इस तेल का 74% हिस्सा खरीदा था। इससे पता चलता है कि भारत रूस से मिलने वाली ऊर्जा पर कितना निर्भर है। साथ ही, यह भी पता चलता है कि भारत रूस के लिए कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत से रूस को बहुत पैसा मिलता है।
पहले चीन की छोटी रिफाइनरी कंपनियां (जिन्हें टीपॉट्स कहा जाता है) रूस से तेल खरीदती थीं। लेकिन अब चीन में टैक्स के नियम सख्त हो गए हैं और तेल की मांग भी कम हो गई है। इसलिए चीन अब रूस से उतना तेल नहीं खरीद रहा है।
प्राइवेट कंपनियों ने बढ़ाई हिस्सेदारीपिछले कुछ सालों में भारत की प्राइवेट रिफाइनरी कंपनियों ने यूरल्स तेल की खरीदारी बढ़ा दी है। साल 2025 में तो उन्होंने बहुत ज्यादा तेल खरीदा है। रिलायंस कंपनी ने इस साल 7.7 करोड़ बैरल तेल खरीदा है। अब रिलायंस दुनिया में यूरल्स तेल की सबसे बड़ी खरीदार बन गई है।
रिलायंस ने रूस के साथ की डीलरिलायंस ने रूस के साथ एक समझौता किया है। इस समझौते के अनुसार रिलायंस रूस से हर दिन 5 लाख बैरल तक तेल खरीदेगी। यह समझौता 10 साल के लिए है और जनवरी से शुरू हो गया है। केप्लर के अनुसार रिलायंस अब जितना भी कच्चा तेल खरीदती है, उसमें से 36% यूरल्स तेल होता है। साल 2022 में यह सिर्फ 10% था। नायरा कंपनी जितना भी तेल खरीदती है, उसमें से 72% यूरल्स तेल होता है। तीन साल पहले यह सिर्फ 27% था।
सरकारी कंपनियों की कितनी हिस्सेदारी?भारत की सरकारी रिफाइनरी कंपनियां (जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड) ने रूस के साथ कोई समझौता नहीं किया है। इन कंपनियों को तेल खरीदने के लिए कुछ खास तरह की करेंसी का इस्तेमाल करना होता है, जिससे उन्हें तेल खरीदने में दिक्कत होती है।
रिलायंस और नायरा के रूस से तेल खरीदने की वजह से यूरल्स तेल की सप्लाई कम हो गई है। इससे भारत की सरकारी रिफाइनरी कंपनियों को तेल खरीदने में दिक्कत हो रही है। उन्हें अब तेल के लिए ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं। पहले उन्हें प्रति बैरल 4 डॉलर की छूट मिलती थी, लेकिन अब सिर्फ 2 डॉलर की छूट मिल रही है। यह जानकारी उन लोगों ने दी है जो इस तेल के व्यापार में शामिल हैं।
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