नेपीडा: म्यांमार में बीते तीन से चल रहे गृहयुद्ध से देश में अराजकता का माहौल है। खासतौर से बीते कुछ महीनों में विद्रोही अराकान आर्मी ने जुंटा शासन के खिलाफ बढ़त हासिल करते हुए कई अहम क्षेत्रों पर कब्जा किया है। म्यांमार में गृहयुद्ध है तो पड़ोसी बांग्लादेश में भी सत्ता परिवर्तन हुआ है। बांग्लादेश में बीते साल शेख हसीना की सत्ता जाने के बाद मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार की कमान संभाली है। ऐसे में अब बांग्लादेश की सीमा से लगते रखाइन राज्य में अराकान आर्मी का कब्जा है तो ढाका में उनकी मददगार मानी जा रही यूनुस सरकार है। इस बीच रिपोर्ट सामने आई है कि ढाका से अराकान आर्मी को मदद पहुंचाने के लिए एक गलियारा बनाने की तैयारी है। नॉर्थईस्ट न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, हालिया दिनों में अराकान आर्मी का बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर पूरी तरह से दबदबा बना लिया है। वे स्पीडबोट से नदी पार करते हुए सीमा पार आते हैं। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के नरम रुख की वजह से अराकान आर्मी के लड़ाकों को बांग्लादेश के ज्यादातर बाजारों तक आसानी से पहुंच मिल रही है। अमेरिका का म्यांमार में अहम प्लानम्यांमार में अराकान आर्मी और उसके सहयोगी गुटों का इस्तेमाल अमेरिका सितवे, क्यौकफ्यू और मनांग जैसे शहरों में जुंटा के खिलाफ करना चाहता है। यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार अमेरिका की इस योजना में मदद कर रही है। इस योजना के तहत सिलखाली स्थित आपूर्ति बेस से अराकान आर्मी को रसद और दूसरे आवश्यक सामान भेजे जाएंगे। सिलखाली बांग्लादेश-म्यांमार सीमा से 30 किलोमीटर दूर है।इस बीच रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के लिए बांग्लादेश से म्यांमार तक मानवीय गलियारा बनाने की बात हो रही है। रोहिंग्या शरणार्थी कुतुपलोंग और नयापारा के शिविरों में खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं। ऐसे में कोशिश की जा रही है कि इस मानवीय गलियारे से रोहिंग्या को सुरक्षित वापस भेजा जाएगा। हालांकि यूनुस सरकार के सामने इस मुद्दे पर कई चुनौती हैं। गलियारा सिर्फ दिखावा!बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) को लगता है कि रोहिंग्याओं के लिए मानवीय गलियारा सिर्फ दिखावा हो सकता है। इसका इस्तेमाल आने वाले महीनों में घातक हथियारों सहित सभी तरह की आपूर्ति म्यांमार भेजने के लिए किया जाएगा। दावा किया जा रहा है कि बांग्लादेशी सेना एनएसए खलीलुर्रहमान की रणनीति में अनिच्छा से शामिल हुई है। रहमान अमेरिका के करीबी हैं।ढाका के एक राजनीतिक विश्लेषक ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यह जोखिम भरा है क्योंकि शायद रोहिंग्या ही इस व्यवस्था से सहमत नहीं होंगे। 13 अप्रैल को बांग्लादेश में एक बैठक में रोहिंग्या को वापस भेजने की योजना में नॉर्वे के अधिकारियों को शामिल करने का सुझाव भी दिया गया लेकिन इस पर सहमति नहीं बन पाई। ऐसे में रोहिंग्या को वापस भेजने की योजना चुनौती बन गई है।
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