नेपीडा: म्यामांर में 2021 से चल रहे गृहयुद्ध में बीते कुछ महीनों में बड़े घटनाक्रम देखने को मिले हैं। खासतौर से विद्रोही गुट अराकान आर्मी (एए) का प्रभाव रखाइन राज्य में तेजी से बढ़ा है। रखाइन में प्रभाव बढ़ाते हुए एए म्यांमार के रणनीतिक पश्चिमी सीमांत क्षेत्र (वेस्टर्न फ्रंट) पर नियंत्रण हासिल करने के करीब पहुंच गई है। इस क्षेत्र पर एए का नियंत्रण होता है तो यह म्यांमार के साथ क्षेत्रीय भूराजनीति को भी बदलेगा क्योंकि चीन और भारत के हित इससे सीधे प्रभावित होंगे।
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की सैन्य सरकार (जुंटा) ने कई हिस्सों में कब्जा जमाया है लेकिन रखाइन के 17 में से 14 कस्बों पर एए का नियंत्रण है। रखाइन पश्चिम में बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है और बांग्लादेश से सीमा साझा करता है। रखाइन में एए की नजर अब एक भारतीय बंदरगाह प्रोजेक्ट और चीन के बेल्ट एंड रोड पहल के गहरे समुद्र वाला बंदरगाह पर है। ऐसे में भारत और चीन की नजर घटनाक्रम पर जमी है।
चीन की फिक्र क्यों बढ़ीरखाइन की राजधानी सितवे के दक्षिण में क्यौकफ्यू के लिए एए निर्णायक लड़ाई के मूड में हैं। यह तटीय केंद्र म्यांमार को चीन के युन्नान प्रांत से तेल और गैस की दोहरी पाइपलाइनों और एक गहरे समुद्री बंदरगाह से जोड़ता है।विश्लेषक एंथनी डेविस का अनुमान है कि एए सितंबर और अक्टूबर के बीच मानसून में आक्रमण शुरू कर सकता है। एए को बरसात के मौसम का फायदा मिलेगा। इससे क्यौकफ्यू पर कब्जा करने की उसकी संभावना बढ़ जाएगी।
क्यौकफ्यू पर हमले की संभावना को देखते हुए चीन ने हाल के महीनों में म्यांमार के सैन्य शासकों के प्रति अपने समर्थन को बढ़ा दिया है। यूएलए प्रतिनिधि का कहना है कि क्यौकफ्यू एए के लिए एक संवेदनशील क्षेत्र है, जहां वह आवश्यक न्यूनतम बल का प्रयोग करता है। प्रतिनिधि ने आगे कहा कि एए चीन के साथ सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव उपाय करने का प्रयास करेगा।
भारत के प्रोजेक्ट पर खतराभारत की भी कलादान परिवहन परियोजना के माध्यम से रखाइन में हिस्सेदारी है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत निर्मित सित्तवे बंदरगाह और एए नियंत्रित क्षेत्र से होकर गुजरने वाले नदी मार्गों के माध्यम से भारत के सुदूर पूर्वोत्तर क्षेत्रों को बंगाल की खाड़ी से जोड़ना है। यह गलियारा भारत को बांग्लादेश को बायपास करते हुए म्यांमार का वैकल्पिक व्यापार मार्ग देता है।
विश्लेषकों का कहना है कि बंदरगाह, सड़क और नदी नेटवर्क पर नियंत्रण करने से एए को भारतीय व्यापार पर कर लगाने की अनुमति मिल सकती है। इससे उसकी वित्तीय स्थिति मजबूत होगी और साथ ही म्यांमार की सेना के नई दिल्ली के साथ संबंध कमजोर होंगे।
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एए रखाइन के तटीय बंदरगाहों पर कब्जा करने में सफल हो जाता है तो चीन और भारत दोनों के लिए महत्वपूर्ण परिवहन और व्यापार मार्गों को नियंत्रित कर सकता है। इससे म्यांमार गृहयुद्ध में एए की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी और वह एक क्षेत्रीय ताकत बन जाएगा।
अल जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की सैन्य सरकार (जुंटा) ने कई हिस्सों में कब्जा जमाया है लेकिन रखाइन के 17 में से 14 कस्बों पर एए का नियंत्रण है। रखाइन पश्चिम में बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है और बांग्लादेश से सीमा साझा करता है। रखाइन में एए की नजर अब एक भारतीय बंदरगाह प्रोजेक्ट और चीन के बेल्ट एंड रोड पहल के गहरे समुद्र वाला बंदरगाह पर है। ऐसे में भारत और चीन की नजर घटनाक्रम पर जमी है।
चीन की फिक्र क्यों बढ़ीरखाइन की राजधानी सितवे के दक्षिण में क्यौकफ्यू के लिए एए निर्णायक लड़ाई के मूड में हैं। यह तटीय केंद्र म्यांमार को चीन के युन्नान प्रांत से तेल और गैस की दोहरी पाइपलाइनों और एक गहरे समुद्री बंदरगाह से जोड़ता है।विश्लेषक एंथनी डेविस का अनुमान है कि एए सितंबर और अक्टूबर के बीच मानसून में आक्रमण शुरू कर सकता है। एए को बरसात के मौसम का फायदा मिलेगा। इससे क्यौकफ्यू पर कब्जा करने की उसकी संभावना बढ़ जाएगी।
क्यौकफ्यू पर हमले की संभावना को देखते हुए चीन ने हाल के महीनों में म्यांमार के सैन्य शासकों के प्रति अपने समर्थन को बढ़ा दिया है। यूएलए प्रतिनिधि का कहना है कि क्यौकफ्यू एए के लिए एक संवेदनशील क्षेत्र है, जहां वह आवश्यक न्यूनतम बल का प्रयोग करता है। प्रतिनिधि ने आगे कहा कि एए चीन के साथ सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव उपाय करने का प्रयास करेगा।
भारत के प्रोजेक्ट पर खतराभारत की भी कलादान परिवहन परियोजना के माध्यम से रखाइन में हिस्सेदारी है। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत निर्मित सित्तवे बंदरगाह और एए नियंत्रित क्षेत्र से होकर गुजरने वाले नदी मार्गों के माध्यम से भारत के सुदूर पूर्वोत्तर क्षेत्रों को बंगाल की खाड़ी से जोड़ना है। यह गलियारा भारत को बांग्लादेश को बायपास करते हुए म्यांमार का वैकल्पिक व्यापार मार्ग देता है।
विश्लेषकों का कहना है कि बंदरगाह, सड़क और नदी नेटवर्क पर नियंत्रण करने से एए को भारतीय व्यापार पर कर लगाने की अनुमति मिल सकती है। इससे उसकी वित्तीय स्थिति मजबूत होगी और साथ ही म्यांमार की सेना के नई दिल्ली के साथ संबंध कमजोर होंगे।
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एए रखाइन के तटीय बंदरगाहों पर कब्जा करने में सफल हो जाता है तो चीन और भारत दोनों के लिए महत्वपूर्ण परिवहन और व्यापार मार्गों को नियंत्रित कर सकता है। इससे म्यांमार गृहयुद्ध में एए की ताकत बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी और वह एक क्षेत्रीय ताकत बन जाएगा।
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