इस्लामाबाद: पिछले कुछ महीनों से तालिबान और पाकिस्तान एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके हैं। कतर में शांति समझौते पर सहमति मिलने के बाद ही अफगानिस्तान की तालिबान सेना के चीफ ऑफ स्टाफ फसीहुद्दीन फितरत ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान फिर हमला करता है, तो वो जड़ से मिट जाएगा। कतर समझौते के दौरान दोनों देशों ने एक दूसरे की सीमा और संप्रभुता का सम्मान करने की बात मानी है। लेकिन, पाकिस्तान ने जब कहा कि तालिबान के साथ डूरंड लाइन पर बात हुई है तो तालिबान ने उसे तुरंत झूठा करार दे दिया। कतर की तरफ से जारी नई प्रेस रिलीज में भी डूरंड लाइन की कोई चर्चा नहीं की गई थी।
यानि डूरंड लाइन पर कोई बात नहीं हुई है, इसीलिए सवाल ये हैं कि क्या ये युद्धविराम सिर्फ क्षण भर के लिए है? क्योंकि संघर्ष के असली कारण अब भी जस के तस बने हुए हैं। सीमाओं के पार अविश्वास, वैचारिक मतभेद और राजनीतिक हितों की उलझनें किसी भी वक्त इस नाजुक शांति को भंग कर सकती हैं।
पाकिस्तान और तालिबान में शांति संभव क्यों नहीं?
दरअसल, संघर्ष की वजहें इतनी ज्यादा गहरी हैं कि उसे खत्म करना नामुमकिन सा दिखता है। विवाद की जड़ें पाकिस्तान के उस आरोप में हैं कि अफगान तालिबान, पाकिस्तानी तालिबान (तहरीक-ए-तालिबान) यानी टीटीपी को पनाह और समर्थन दे रहे हैं। इस्लामाबाद का दावा है कि टीटीपी, अफगानिस्तान से संचालित होकर पाकिस्तान में इस्लामिक कानून लागू करने और तालिबान जैसा शासन व्यवस्था लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, तालिबान सरकार इन आरोपों को खारिज करती है। लेकिन यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि टीटीपी के लड़ाके अफगानिस्तान में रहते हैं, वहां उनकी ट्रेनिंग होती है और उनके हाथों में वो हथियार आ गये हैं, जो साल 2021 में अमेरिका छोड़कर गया था।
अमेरिकी हथियारों के दम पर टीटीपी की हमलावर क्षमता कई गुना बढ़ी है, जिसने पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों की नाक में दम कर दिया है। इसके अलावा तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के भारत दौरे ने पाकिस्तान की भौंहें चढ़ा दी हैं। ताजा विवाद उस वक्त बढ़ा, जब पिछले महीने टीटीपी ने पाकिस्तान में एक पुलिस प्रशिक्षण स्कूल पर खतरनाक आत्मघाती हमला कर दिया, जिसमें 23 लोग मारे गए। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में काबुल और कंधार में टीटीपी ठिकानों पर हवाई हमले किए। इसके बाद अफगान बलों ने डूरंड रेखा पर पाकिस्तानी चौकियों पर हमला कर दिया और पाकिस्तानी सेना के 58 जवानों को मारने का दावा किया। पाकिस्तान ने 23 की मौत कबूली।
पाकिस्तान को क्यों डंस रहा तालिबान का 'सांप'?
दरअसल पाकिस्तान को आज वही सांप डंस रहा है, जिसे दशकों से पाकिस्तान ने पाल पोसकर लगातार जहरीला ही बनाया है। इस्लामाबाद ने 1990 के दशक से तालिबान को क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने के औजार के रूप में इस्तेमाल किया। भारत को चोट पहुंचाने के लिए अफगानिस्तान को स्ट्रैटजिक डेप्थ बनाने की कोशिश की। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने खुद ही कबूल किया है कि पाकिस्तान ने डबल स्टैंडर्ड की नीति अपनाई। एक तरफ उसने आतंकवाद की निंदा की, दूसरी तरफ चरमपंथी समूहों को पाला-पोसा।
उसी नीति का नतीजा है कि आज तालिबान अफगानिस्तान पर राज कर रहे हैं और पाकिस्तान में हर दिन आम लोगों से लेकर सैनिक मर रहे हैं। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के पहले 9 महीने में पाकिस्तानी सेना के 2400 जवान मारे गये हैं। इसीलिए पाकिस्तान में हमले तभी खत्म होंगे, जब टीटीपी खत्म हो और टीटीपी ने जिस तरह से अपना विस्तार किया, उससे लगता नहीं कि पाकिस्तान उसे खत्म कर पाएगा। टीटीपी को खत्म करने के लिए उसे अफगानिस्तान में फिर हमले करने पड़ेंगे और वो अगर ऐसा करता है, तो फिर तालिबान के साथ उसका युद्ध होगा।
यानि डूरंड लाइन पर कोई बात नहीं हुई है, इसीलिए सवाल ये हैं कि क्या ये युद्धविराम सिर्फ क्षण भर के लिए है? क्योंकि संघर्ष के असली कारण अब भी जस के तस बने हुए हैं। सीमाओं के पार अविश्वास, वैचारिक मतभेद और राजनीतिक हितों की उलझनें किसी भी वक्त इस नाजुक शांति को भंग कर सकती हैं।
पाकिस्तान और तालिबान में शांति संभव क्यों नहीं?
दरअसल, संघर्ष की वजहें इतनी ज्यादा गहरी हैं कि उसे खत्म करना नामुमकिन सा दिखता है। विवाद की जड़ें पाकिस्तान के उस आरोप में हैं कि अफगान तालिबान, पाकिस्तानी तालिबान (तहरीक-ए-तालिबान) यानी टीटीपी को पनाह और समर्थन दे रहे हैं। इस्लामाबाद का दावा है कि टीटीपी, अफगानिस्तान से संचालित होकर पाकिस्तान में इस्लामिक कानून लागू करने और तालिबान जैसा शासन व्यवस्था लागू करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, तालिबान सरकार इन आरोपों को खारिज करती है। लेकिन यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि टीटीपी के लड़ाके अफगानिस्तान में रहते हैं, वहां उनकी ट्रेनिंग होती है और उनके हाथों में वो हथियार आ गये हैं, जो साल 2021 में अमेरिका छोड़कर गया था।
अमेरिकी हथियारों के दम पर टीटीपी की हमलावर क्षमता कई गुना बढ़ी है, जिसने पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों की नाक में दम कर दिया है। इसके अलावा तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के भारत दौरे ने पाकिस्तान की भौंहें चढ़ा दी हैं। ताजा विवाद उस वक्त बढ़ा, जब पिछले महीने टीटीपी ने पाकिस्तान में एक पुलिस प्रशिक्षण स्कूल पर खतरनाक आत्मघाती हमला कर दिया, जिसमें 23 लोग मारे गए। पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई में काबुल और कंधार में टीटीपी ठिकानों पर हवाई हमले किए। इसके बाद अफगान बलों ने डूरंड रेखा पर पाकिस्तानी चौकियों पर हमला कर दिया और पाकिस्तानी सेना के 58 जवानों को मारने का दावा किया। पाकिस्तान ने 23 की मौत कबूली।
पाकिस्तान को क्यों डंस रहा तालिबान का 'सांप'?
दरअसल पाकिस्तान को आज वही सांप डंस रहा है, जिसे दशकों से पाकिस्तान ने पाल पोसकर लगातार जहरीला ही बनाया है। इस्लामाबाद ने 1990 के दशक से तालिबान को क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने के औजार के रूप में इस्तेमाल किया। भारत को चोट पहुंचाने के लिए अफगानिस्तान को स्ट्रैटजिक डेप्थ बनाने की कोशिश की। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने खुद ही कबूल किया है कि पाकिस्तान ने डबल स्टैंडर्ड की नीति अपनाई। एक तरफ उसने आतंकवाद की निंदा की, दूसरी तरफ चरमपंथी समूहों को पाला-पोसा।
उसी नीति का नतीजा है कि आज तालिबान अफगानिस्तान पर राज कर रहे हैं और पाकिस्तान में हर दिन आम लोगों से लेकर सैनिक मर रहे हैं। अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल के पहले 9 महीने में पाकिस्तानी सेना के 2400 जवान मारे गये हैं। इसीलिए पाकिस्तान में हमले तभी खत्म होंगे, जब टीटीपी खत्म हो और टीटीपी ने जिस तरह से अपना विस्तार किया, उससे लगता नहीं कि पाकिस्तान उसे खत्म कर पाएगा। टीटीपी को खत्म करने के लिए उसे अफगानिस्तान में फिर हमले करने पड़ेंगे और वो अगर ऐसा करता है, तो फिर तालिबान के साथ उसका युद्ध होगा।
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