नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने जजों की नियुक्ति विषय पर बात करते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने सीजेआई की नियुक्ति में मनमानी की थी। उन्होंने सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों को नजरअंदाज कर उनसे जूनियर को चीफ जस्टिस बनाया था। यूके सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आयोजित गोलमेज सम्मेलन में ‘न्यायिक वैधता और सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने’ विषय पर अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कार्यपालिका पर सवाल उठाए और कहा कि न्याय के लिए जजों का स्वतंत्र होना आवश्यक है। सीजेआई गवई ने कॉलेजियम का भी जिक्र किया।
जस्टिस गवई ने कहा कि भारत में हमेशा से ही जजों की नियुक्ति को लेकर विवाद रहा है। यह विवाद न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच न्यायिक नियुक्तियों में प्राथमिकता को लेकर रहा है। साल 1993 तक, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति का अंतिम फैसला कार्यपालिका का होता था। इस दौरान जजों की नियुक्ति के दो ऐसे मामले हुए जब वरिष्ठता को दरकिनार किया गया। सीजेआई गवई ने बताया कि साल 1964 में जस्टिस सैयद जाफर इमाम को वरिष्ठता के बावजूद सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस नहीं बनाया गया क्योंकि वे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने जस्टिस पीबी गजेंद्रगढ़कर को सीजेआई के पद पर नियुक्त किया था।
इसी तरह जस्टिस एच.आर. खन्ना को 1977 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। एचआर खन्ना द्वारा इमरजेंसी से जुड़े (एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला) मामले में दिए गए एक असहमति पूर्ण फैसले के कारण उनसे नाराज थीं। इसी के चलते न्यायाधीश एमएच बेग को सीजेआई न्यायाधीश बना दिया था। इस फैसले से नाराजगी के चलते जस्टिस खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से इस्तीफा दे दिया था। मुख्य न्यायाधीश गवई ने न्यायाधीशा के द्वारा रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद ग्रहण करने या इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह नैतिक चिंताएं पैदा करने वाला है।
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