देहरादून/उत्तराखंड — उत्तराखंड इस समय युवाओं के गुस्से का केंद्र बना हुआ है। राज्यभर में बेरोज़गार युवाओं और छात्रों ने सरकार के खिलाफ़ जमकर प्रदर्शन किया और सड़कों पर उतरकर नारे लगाए — “पेपर चोर — गद्दी छोड़”। यह नारा केवल एक विरोध नहीं, बल्कि बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और टूटी हुई उम्मीदों का प्रतीक बन गया है।
देहरादून/उत्तराखंड — उत्तराखंड इस समय युवाओं के गुस्से का केंद्र बना हुआ है। राज्यभर में बेरोज़गार युवाओं और छात्रों ने सरकार के खिलाफ़ जमकर प्रदर्शन किया और सड़कों पर उतरकर नारे लगाए — “पेपर चोर — गद्दी छोड़”। यह नारा केवल एक विरोध नहीं, बल्कि बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और टूटी हुई उम्मीदों का प्रतीक बन गया है।
पृष्ठभूमि: पेपर लीक का कांड
उत्तराखंड में हाल के महीनों में कई भर्ती परीक्षाएँ आयोजित की गईं। इन परीक्षाओं का उद्देश्य युवाओं को सरकारी नौकरियों में अवसर देना था। लेकिन बार-बार यह आरोप लगा कि प्रश्नपत्र लीक कर दिए गए थे और कुछ उम्मीदवारों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।सबसे ताज़ा घटना में पुलिस ने कुछ आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिन पर आरोप था कि उन्होंने परीक्षा केंद्र में पेपर की तस्वीरें खींचीं और उन्हें बाहर भेजा। जाँच में यह भी सामने आया कि आरोपी ने अलग-अलग पहचान-पत्रों का इस्तेमाल करके आवेदन किया था। यह खुलासा बताता है कि परीक्षा प्रणाली कितनी लापरवाह और भ्रष्टाचार से प्रभावित हो चुकी है।
युवाओं का आक्रोश क्यों?
उत्तराखंड जैसे छोटे और पर्वतीय राज्य में सरकारी नौकरी का सपना लाखों युवाओं के जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य होता है। यहाँ पर निजी उद्योग और कॉरपोरेट अवसर सीमित हैं, इसलिए सरकारी भर्तियाँ ही रोज़गार की मुख्य राह मानी जाती हैं।जब यही भर्तियाँ पेपर लीक, नकल और धांधली की वजह से रद्द हो जाती हैं या विवादों में घिर जाती हैं, तो युवाओं की मेहनत, समय और सपने सब बर्बाद हो जाते हैं।कई अभ्यर्थियों का कहना है कि उन्होंने सालों तक तैयारी की, कोचिंग ली, परिवार ने आर्थिक तंगी के बावजूद पढ़ाई में निवेश किया, लेकिन परीक्षा रद्द होने या पेपर लीक हो जाने से उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। यही निराशा अब गुस्से का रूप लेकर सड़कों पर दिख रही है।
“पेपर चोर — गद्दी छोड़”: नारों का संदेश
प्रदर्शन कर रहे युवाओं का कहना है कि यह सिर्फ़ पेपर लीक का मामला नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की विफलता का प्रतीक है। उनका मानना है कि अगर सरकार परीक्षाओं को पारदर्शी और सुरक्षित तरीके से आयोजित नहीं करवा सकती, तो उसे सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं है।नारा “पेपर चोर — गद्दी छोड़” इसीलिए लोकप्रिय हो गया है, क्योंकि यह सीधे-सीधे सत्ता और जिम्मेदार नेताओं को कटघरे में खड़ा करता है।
सरकार की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से लिया है। उन्होंने इसे “नकल जिहाद” तक कह दिया और दोषियों को कड़ी सज़ा देने का आश्वासन दिया।सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) गठित की है। SIT की निगरानी एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा किए जाने की घोषणा भी की गई। सरकार का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वे कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों।
विपक्ष और समाज की आवाज़
राज्य के विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सरकार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। उनका आरोप है कि बार-बार हो रहे पेपर लीक इस बात का सबूत हैं कि व्यवस्था में गहरे स्तर पर भ्रष्टाचार है।सामाजिक संगठनों और छात्र समूहों का कहना है कि सिर्फ़ कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी से समस्या हल नहीं होगी। उन्हें लगता है कि जब तक भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और टेक्नोलॉजी आधारित नहीं होगी, तब तक ये धांधलियाँ रुकने वाली नहीं।
जाँच की स्थिति
पुलिस और SIT ने अब तक कई लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों से पूछताछ जारी है और शुरुआती जांच से संकेत मिले हैं कि यह एक संगठित गिरोह का काम है, जो पेपर लीक करके पैसे कमाता है।पुलिस का दावा है कि वे सभी कड़ियाँ जोड़ रहे हैं और जल्द ही पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश करेंगे। लेकिन छात्रों का कहना है कि ऐसी जांचें पहले भी हुईं, लेकिन कोई बड़ा सुधार सामने नहीं आया।
बेरोज़गारों की व्यथा
प्रदर्शन कर रहे एक युवा ने कहा, “हमने तीन साल तैयारी की, दिन-रात मेहनत की। अब जब नौकरी का मौका आया, तो सरकार और माफिया ने मिलकर हमारा भविष्य बिगाड़ दिया। आखिर कब तक हम ऐसे ही सड़कों पर नारे लगाते रहेंगे?”कई युवाओं का मानना है कि सरकार को चाहिए कि वह परीक्षा प्रक्रिया को डिजिटल और फुलप्रूफ बनाए। अगर ऑनलाइन परीक्षाएँ या सुरक्षित तकनीक इस्तेमाल की जाए, तो पेपर लीक की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है।
सामाजिक असर
इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य में बेरोज़गारी और निराशा की समस्या को और गहरा कर दिया है। परिवारों में तनाव है, अभ्यर्थी मानसिक दबाव झेल रहे हैं और समाज में असंतोष बढ़ रहा है।युवा पीढ़ी को लग रहा है कि सरकार उनकी मेहनत की क़दर नहीं कर रही और सिर्फ़ वादों तक सीमित है। यही कारण है कि उनका गुस्सा अब नारों और प्रदर्शनों में फूट रहा है।
सरकार के सामने चुनौतियाँ
राज्य सरकार अब एक मुश्किल स्थिति में है। एक तरफ़ उसे दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करनी है, ताकि युवाओं का भरोसा लौटे। दूसरी ओर उसे यह भी सुनिश्चित करना है कि भविष्य की परीक्षाएँ पारदर्शी और सुरक्षित तरीके से आयोजित हों।अगर सरकार सिर्फ़ जांच और गिरफ्तारी तक सीमित रही, तो यह मुद्दा राजनीतिक संकट का रूप ले सकता है। युवाओं का गुस्सा चुनावी समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।
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