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हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को तहसीलदार की संपत्ति की जांच के आदेश के साथ कलेक्टर को दिए विभागीय जांच के निर्देश

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जबलपुर, 27 जून (Udaipur Kiran) । भोपाल के गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया को अतिक्रमण संबंधी हाईकोर्ट के आदेश को लापरवाही में टालने पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। सख्त हुए हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश जारी किया जिसका असर अब पूरे प्रदेश के तहसीलदारों पर पड़ेगा।

दरअसल 23 जुलाई 2024 को गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया को आदेश जारी हुआ। आदेश में कहा गया कि कब्जा दिलाकर संपत्ति बैंक को सौंप दी जाए। इसके लिए पुलिस सहायता लेने के निर्देश भी दिए गए थे। तहसीलदार ने यह आदेश लगभग आठ महीने तक लंबित रखा। बैंक ने कई बार तहसील कार्यालय में आवेदन जमा किए कोई कार्रवाई नहीं की गई।

बैंक ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। हाईकोर्ट की डिविजन बेंच में जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल ने सुनवाई की। कोर्ट ने आदेश दिया कि 23 जून 2025 तक मॉर्टगेज संपत्ति पर कब्जा दिलाया जाए। तहसीलदार ने इस आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया। 23 जून को अगली सुनवाई हुई। इसमें तहसीलदार को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश था। तब भी उन्होंने केवल खानापूर्ति करते हुए एक नोटिस जारी कर दिया। कोर्ट ने इस मामले में तहसीलदार की भूमिका पर संदेह जताया। कोर्ट ने आशंका जताई कि तहसीलदार अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं। 26 जून 2025 को तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने आते ही माफी मांगी और 26 जून को जारी किए गए नोटिस का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। कोर्ट ने पूछा कि एडीएम के आदेश में 11 महीने की देरी क्यों की गई। कोर्ट के इस सवाल का तहसीलदार कोई जवाब नहीं दे सके।

इस सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की डिविजन बेंच जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल ने आदेश पारित करते हुए कहा कि सरफेसी एक्ट की धारा 14 के तहत सीजेएम और एडीएम द्वारा जारी आदेशों पर तहसीलदारों को हर हाल में 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनके विरुद्ध सेवा में लापरवाही के चलते विभागीय जांच की जाएगी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस निर्देश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजी जाए, जो इसे सभी कलेक्टरों को भेजेंगे, और प्रत्येक जिला कलेक्टर इसे अपने जिले के सभी तहसीलदारों को प्रेषित करेंगे।

हाईकोर्ट ने साफ कहा कि इस कार्रवाई में लापरवाही यह दर्शाती है कि तहसीलदार अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं। उन्होंने रिश्वत लेकर भ्रष्टाचार किया है। कोर्ट ने लोकायुक्त को तहसीलदार की संपत्ति की जांच के आदेश दिए। साथ ही यह पता लगाने को कहा कि उनके पास आय से अधिक संपत्ति है या नहीं। भोपाल कलेक्टर को भी निर्देश दिया गया कि उन्हें तहसीलदार के खिलाफ विभागीय जांच कर तीन महीने में रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी होगी।

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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक

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