भोपाल, 23 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्य प्रदेश के मुरैना का शनि पर्वत इन दिनों श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। अतिप्राचीन समय से विश्व में एकमात्र मूर्ति स्वरूप में विराजमान शनि देव का मंदिर यहीं स्थित है। धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि उपासना के लिए यह स्थान अत्यंत फलदायी है, इसी कारण हजारों श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचना शुरू कर दिया है। इस बार यहां शनि अमावस्या के अवसर पर जिला प्रशासन ने दो दिवसीय शनि मेले का आयोजन किया है।
उल्लेखनीय है कि शनि पर्वत, जिसे ऐति पर्वत भी कहा जाता है, रामायण काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि लंका दहन के समय हनुमान जी ने रावण की कैद से मुक्त कराए गए शनि देव को अपनी पूरी शक्ति से उछाला था और शनि देव आकर इस पर्वत पर गिरे। यहीं उन्होंने तपस्या कर अपनी शक्तियाँ अर्जित कीं। तभी से यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बन गया।
जिला प्रशासन ने मेले के लिए सुरक्षा व्यवस्था में छह सौ पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, वहीं अतिरिक्त बल भिंड, श्योपुर और दतिया से बुलाया गया है। 60 सदस्यीय क्यूआरएफ टीम भी लगातार निगरानी की जा रही है। पुलिस चौकियाँ, खोया-पाया केंद्र और मेडिकल कैम्प लगाए गए हैं। दो ड्रोन कैमरों से मेले की निगरानी हो रही है। ग्वालियर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए स्टेशन शनिचरा के पास पार्किंग की गई है जबकि मुरैना-बानमौर मार्ग पर रांसु तिराहे पर अलग पार्किंग स्थल बनाया गया है। ट्रैक्टर, ट्रॉली और ट्रक जैसे भारी वाहनों का प्रवेश अगले दो दिनों तक पूरी तरह बंद कर दिया गया है।
कलेक्टर अंकित अस्थाना ने बताया कि पिछले वर्ष यहां तीन लाख पच्चीस हजार श्रद्धालु पहुंचे थे और इस बार संख्या और अधिक होने की संभावना है। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए भंडारों के पंडाल मंदिर से दूरी पर बनाए गए हैं। स्नान और कपड़े धोने की अलग व्यवस्था की गई है, वहीं स्वास्थ्य सुविधा के लिए एम्बुलेंस और पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था भी की गई है।
आचार्य बृजेश चंद्र दुबे ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि देव कलयुग के न्यायाधीश माने जाते हैं। श्रद्धालु काले तिल, सरसों का तेल, उड़द दाल और काले वस्त्र चढ़ाकर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। शनिचरी अमावस्या पर स्नान और दान का विशेष महत्व माना गया है। श्रद्धालु स्नान के बाद अपने जूते-चप्पल और कपड़े वहीं त्याग देते हैं, जिन्हें पनौती समझा जाता है। बाद में इनका प्रशासन द्वारा नीलामी की जाती है।
आचार्य दुबे ने इस दौरान यह भी बताया कि भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि 22 अगस्त को प्रातः 11 बजकर 55 मिनट से प्रारंभ होकर 23 अगस्त को प्रातः 11 बजकर 35 मिनट पर समाप्त है। उदया तिथि के आधार पर शनि अमावस्या का पर्व 23 अगस्त, यानी आज मनाया जा रहा है। विशेष बात यह है कि वर्ष 2025 की यह अंतिम शनि अमावस्या है।
मंदिर के पुजारी पंडित जितेंद्र बैरागी के अनुसार अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। जिन लोगों पर शनि की साढ़े साती, ढैय्या, पितृ दोष, कालसर्प योग या अशुभ ग्रहों का प्रभाव होता है, उनके लिए इस दिन किया गया शनि पूजन विशेष लाभकारी होता है।
इधर, उज्जैन के शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर भी शनिचरी अमावस्या पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा है। मध्यरात्रि से ही श्रद्धालु स्नान के लिए घाट पर पहुंचने लगे। प्रशासन ने फव्वारों से स्नान की विशेष व्यवस्था की। यहां शनि मंदिर को आकर्षक फूलों से सजाया गया और शनि महाराज को राजा के रूप में पगड़ी पहनाकर श्रृंगारित किया गया। स्नान और पूजन के बाद श्रद्धालु अपने वस्त्र और चप्पल वहीं छोड़कर मंदिर के दर्शन करते हैं।
इसी तरह से नर्मदा तटों, ताप्ती एवं अन्य नदियों के किनारे भी स्नान के लिए बड़ी संख्या में सुबह से श्रद्धालुओं ने पहुंचना आरंभ रखा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माँ ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है । यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते हैं उन्हे ताप्ती मे स्नान करने से राहत मिलती है । इसलिए आज सुबह से ही बैतूल के मुलताई स्थित ताप्ती कुंड में भोर से ही पुण्य लाभ लेने श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा रही है। चंबल, शिवना, पार्वती एवं अन्य नदियों के तटों पर भी भारी संख्या में स्नान का पुण्य लाभ लेने श्रद्धाभाव रखनेवाले लोग पहुंचे हैं । इस तरह से प्रदेश भर में लाखों श्रद्धालु न केवल पूजा-पाठ और दान में भाग ले रहे हैं, बल्कि धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप शनि देव की कृपा प्राप्त करने की कामना करते हुए भी देखे जा रहे हैं।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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