विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो आपके दिल को झकझोर देगी। यह कहानी है 85 साल की गोंदा बाई की, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने सात बच्चों की परवरिश में खपा दी, लेकिन आज वही बच्चे उन्हें अकेले छोड़कर चले गए। गोंदा बाई की आंखें हर पल अपने बच्चों को ढूंढती हैं, लेकिन अब उनकी नजरें कमजोर हो चुकी हैं। फिर भी, जब कोई उनके पास आता है, तो वे अपने बच्चों का नाम लेकर उसे पहचानने की कोशिश करती हैं। यह कहानी सिर्फ गोंदा बाई की नहीं, बल्कि उन तमाम माता-पिताओं की है, जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ करते हैं, लेकिन बदले में उन्हें सिर्फ अकेलापन मिलता है।
बच्चों ने छोड़ा मां का साथगोंदा बाई विदिशा जिले की नटेरन तहसील की रहने वाली हैं। उनके सात बच्चे हैं—तीन बेटे और चार बेटियां। सभी की आर्थिक स्थिति अच्छी है। कोई विदिशा में रहता है, तो कोई इंदौर में बस गया है। लेकिन दुख की बात यह है कि मां के अंतिम दिनों में कोई भी उनका सहारा बनने को तैयार नहीं है। गोंदा बाई अब वृद्धाश्रम में रहती हैं, जहां उनकी आंखें हर वक्त अपने बच्चों की राह देखती हैं। वे बताती हैं कि उनका सबसे बड़ा बेटा गांव में पैतृक घर में रहता है, लेकिन उसी ने उन्हें खंडहर हो चुके घर में बेसहारा छोड़ दिया था। दूसरा बेटा विदिशा में तीन मंजिला मकान का मालिक है, और तीसरा इंदौर में अच्छा-खासा पैसा कमाता है। फिर भी, कोई भी मां को अपने साथ रखने को तैयार नहीं है।
बेटियों ने भी दिया धोखागोंदा बाई की बेटियों ने भी उन्हें निराश किया है। उनकी सबसे बड़ी बेटी, जो सरकारी नौकरी में है, मां को वृद्धाश्रम के गेट पर छोड़कर चली गई। बाकी बेटियां भी मां की जिम्मेदारी लेने से कतराती हैं। गोंदा बाई अपने बच्चों की बुराई नहीं करतीं। वे कहती हैं, “यह सब समय का खेल है। पहले यही बच्चे मेरे पीछे मां-मां करते हुए घूमते थे। बड़ी बहू-छोटी बहू मुझसे पूछकर हर काम करती थीं। लेकिन अब सब बदल गया।” उनकी बातों में दर्द साफ झलकता है, लेकिन वे अपने बच्चों के लिए कोई गलत शब्द नहीं बोलतीं।
एक मां का अटूट प्यारगोंदा बाई की कहानी सुनकर यह सवाल उठता है कि क्या बच्चों का फर्ज सिर्फ अपने लिए जीने तक सीमित है? गोंदा बाई ने अपने बच्चों के लिए अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी, लेकिन आज वे अकेलेपन की सजा भुगत रही हैं। उनकी कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। क्या हम भी अपने व्यस्त जीवन में उन्हें भूल तो नहीं रहे? गोंदा बाई की तरह न जाने कितने बुजुर्ग आज वृद्धाश्रमों में अपने बच्चों की राह देख रहे हैं।
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