हरिद्वार की पावन धरती से गंगाजल लेकर गाजियाबाद पहुंची शबनम की कहानी दिल को छू लेने वाली है। यह कहानी केवल धार्मिक आस्था की नहीं, बल्कि परिवार, प्रेम और समर्पण की भी है। शबनम, जो पहले मुस्लिम थीं, ने अपने सास-ससुर के लिए 21 लीटर गंगाजल की कांवड़ उठाई और सनातन धर्म को अपनाकर शिवभक्ति का अनूठा उदाहरण पेश किया। उनकी यह यात्रा न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि एक ऐसे समाज की तस्वीर भी पेश करती है, जहां प्रेम और विश्वास धर्म की सीमाओं से परे हैं।
मुश्किल वक्त में मिला परिवार का सहाराशबनम की जिंदगी में एक समय ऐसा आया जब उनके पहले पति का देहांत हो गया। उस मुश्किल दौर में, जब कोई साथ देने वाला नहीं था, पवन और उनके परिवार ने शबनम को अपनाया। पवन के माता-पिता, मंजू और अशोक कुमार, ने उन्हें बेटी की तरह प्यार दिया। इस प्रेम और सम्मान ने शबनम का दिल जीत लिया। उन्होंने पवन से दूसरी शादी की और सनातन धर्म को अपनाकर एक नया जीवन शुरू किया। शबनम कहती हैं, “मेरे सास-ससुर ने मुझे कभी पराया नहीं समझा। उनकी सेवा और आशीर्वाद ही मेरी ताकत है।”
गंगाजल की कांवड़: श्रद्धा और सेवा का प्रतीक12 जुलाई को शबनम अपने पति पवन के साथ हरिद्वार से 21 लीटर गंगाजल लेकर गाजियाबाद लौटीं। यह कांवड़ उन्होंने अपने सास-ससुर के लिए समर्पित की। भारी कांवड़ को कंधों पर उठाकर चलना आसान नहीं था, लेकिन शबनम की आस्था और उनके सास-ससुर के प्रति प्रेम ने उन्हें कभी डगमगाने नहीं दिया। वह कहती हैं, “यह कांवड़ मेरे लिए सिर्फ गंगाजल का कलश नहीं, बल्कि मेरे परिवार के प्रति मेरी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है।” शबनम की यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता और परिवार के मूल्यों को महत्व देता है।
शिवभक्ति में डूबी शबनम की जिंदगीसनातन धर्म अपनाने के बाद शबनम की जिंदगी में भोलेनाथ की भक्ति गहरी हो गई है। वह अपने दो बच्चों के साथ एक सुखी जीवन जी रही हैं और अपने सास-ससुर की सेवा को अपनी प्राथमिकता मानती हैं। शबनम कहती हैं, “मैं चाहती हूं कि मेरे सास-ससुर हमेशा खुश रहें। उनके लिए यह कांवड़ लाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।” उनकी यह कहानी न केवल धार्मिक एकता की मिसाल है, बल्कि यह भी दिखाती है कि सच्चा प्रेम और आस्था किसी भी बंधन को तोड़ सकती है।
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